Wrestlers news: मंगलवार को आजिज आकर देश के पहलवान अपने मेडल को गंगा में बहाने हरिद्वार पहुंच गए। मेडल को गंगा में फेंकने से पहले रट रहे बिलखते रहे। सरकार मौन ही रही। ढलते शाम को किसान नेता नरेश टिकैत पहलवानों के बीच पहुंचे ,उन्हें मनाया और उनके मेडल को लेकर वापस लौट गए। गंगा को मेडल नहीं मिल सका। पहलवान आज से फिर डरना देंगे। आमरण अनशन करेंगे लेकिन कहाँ करेंगे ,कोई स्थान निर्धारित नहीं है। यह वही देश है जहां अनशन और धरना के जरिये ही देश को आजादी दिलाने में महात्मा गाँधी ने भूमिका निभाई थी। सत्य और अहिंसा का पाठ पढ़ाया था। लेकिन अब वही देश अनशन और धरना को कानून के खिलाफ मानता है और किसी को इसकी इजाजत नहीं देता। जो ऐसा करता है उसके खिलाफ सरकारी प्रक्रिया शू हो जाती है। देश के पहलवानों के खिलाफ आज जो कुछ भी हो रहा है यह देश की एक बानगी भर है।
लेकिन उधर मणिपुर में भी तो यही सब चल रहा है। वहां भी खिलाडी महिलाएं और पुरुष खिलाड़ी सरकार के सामने गिड़गिड़ा ही तो रहे हैं। मणिपुर जल रहा है। लेकिन दिल्ली में सत्ता की राजनीति और सरकार के हनक की कहानी रची जा रही है। मीडिया उसी में मशगूल है। मणिपुर खिलाडियों घर है। दुनिया में भारत का नाम रोशन करने वाले कई खिलाडी इसी मणिपुर से आते हैं। अशांत और जातीय हिंसा में झुलस रहे मणिपुर की जो कहानी है उससे वहां के खिलाड़ी काफी डरे हुए हैं। वे सरकार से गुहार लगा रहे हैं। अभी गृह मंत्री अमित शाह मणिपुर के दौरे पर हैं। जिनकी जाने गई है उनके परिजनों को सरकारी सहायता की घोषणा की जा रही है। पैसे बांटे जा रही है और नौकरी देने की बात की जा रही है। लेकिन मणिपुर में जातीय हिंसा क्यों हुई इस पर कोई बात नहीं हो रही।
अमित शाह चार दिनों की यात्रा पर मणिपुर गए हुए हैं। नागा कुकी और मैतेई के बीच चल रहे संघर्ष की कहानी कहाँ से शुरू हुई यह सबको पता है। लेकिन मणिपुर जल रहा है। मणिपुर में बीजेपी की सरकार है और केंद्र में भी मोदी की सरकार है। यानी डबल इंजन की सरकार। मणिपुर फिर जला क्यों ? इसकी जिम्मेदारी लेगा कौन ? जिन लोगों की जाने गई है उसके लिए भी कौन जिम्मेदार हैं ? इसका जवाब कौन देगा ? क्या मीडिया को कुछ पता बह है ? बता दे कि सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक़ अभी तक मणिपुर जातीय हिंसा में 80 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है जबकि हजारो लोग घायल हैं। उग्रवाद के नाम पर भी कई लोग मारे गए हैं। कह सकते हैं कि मणिपुर में सैकड़ों लोगों की जाने गई है। लेकिन कोई जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं।
उधर ,ओलम्पिक पदक विजेता मीराबाई चानू समेत सूबे के 11 शीर्ष खिलाडियों ने शाह को एक पत्र सौंपा है। इस पत्र में मणिपुर को बचाने की प्रार्थना की गई है। मणिपुर के संकट का हल निकालने की विनती की गई है। खिलाडियों ने अंत में यह भी कहा है कि अगर हालात जल्द सामान्य नहीं हुए तो वे अपने तमगे और पुरस्कार सरकार को लौटा देंगे। आपको बता दे कि सरकार को सौपे गए पत्र में जिन लोगों के हस्ताक्षर हैं जरा उनके नाम को भी जान जाइएगा तो आपकी घिघि बंध जाएगी। देश के इन शीर्ष खिलाड़ियों में शामिल है भारोत्तोलक कुंजरानी देवी ,मुक्केबाज सरिता देवी ,और अन्य महान खिलाड़ी।
कह सकते हैं कि दिल्ली से लेकर मणिपुर तक खिलाड़ी सरकार से न्याय की भीख मांग रहे हैं लेकिन सरकार मौन है और जो काम मीडिया को करना चाहिए था वह चरण बंदना में मस्त है। यह लोकतंत्र का सच। इस लोकतंत्र का ढोल बजाते रहे। भारत माता का जयगान करते रहे।
सच तो यही है कि इस देश में क्या हो रहा है किसी को पता नहीं। चारो तरफ अफरा तफरी का माहौल है लेकिन खबरिया चैनलों में नीरव शांति। सुबह से शाम तक अजेंडा सेट करके विपक्ष को टारगेट करने का खेल ! लेकिन खेल जनता को पता चल जाए तब क्या होता है शायद इसकी जानकारी स्टूडियो में बैठे चरण चुंबको को पता भी नहीं। पिछले दो साल के भीतर ही कई कथित पत्रकारों की जनता ने पिटाई भी की और कइयों को बेइज्जत होना पड़ा। बेइजत्ती की कहानी तो आज भी जारी है। लेकिन अपने ाक़ों के डर से आखिर कथित पत्रकार करे भी क्या ?
दिल्ली में पहलवानों के साथ क्या कुछ हो रहा है इसे दुनिया देख रही है लेकिन गोदी पत्रकारों को कुछ दिखता नहीं। लगता है कि सरकार ने उनकी आँखों पर पट्टी लगा दी है। लेकिन जनता तो सब देख रही है। कई लोग कह रहे हैं कि कर्नाटक में बीजेपी की हार से गोदी मीडिया कुछ ज्यादा ही परेशान है। कई चैनलों के लोग ही बताते हैं कि बजाप्ता चैनल के मालिकों को आदेश मिलता है की आज क्या कुछ करना है। इसके बाद मालिक कथित संपादक के साथ बैठकी करता है और दिन भर का अजेंडा तैयार करता है और फिर उसकी जानकारी देने सरकार के लोगों तक पहुँच जाता है। बाकी दफ्तर में बैठे लकवा ग्रस्त ,दिमाग विहीन और अंधे कर्मचारी उस अजेंडे को आगे बढ़ाने में जुट जाते हैं। ये कथित पत्रकार और कर्मचार कभी न्यूज़ रूम से बाहर नहीं निकलते। वे कहते भी हैं कि हम पत्रकार तो हैं नहीं। कर्मचारी है। ऐसे में जो काम मिलता है करते जाते हैं। अब तो पूरा समय एक ही पार्टी और सरकार के बारे में क्या लिखना है इसी में गुजर जाता है। हमें देश और दुनिया में क्या चलता है उसे न कोई मतलब है और न ही इसका मायने है।
अभी ये बाते आप से किसलिए की जा रही है ? सिर्फ इसलिए कि देश में बहुत कुछ ठीक नहीं हो रहा। देश के हर इलाके में जनता की इतनी समस्याएं हैं उसे कोई बता नहीं रहा। लगता है कि पत्रकारों ने अखबारों को पढ़ना भी छोड़ दिया है। या फिर अखबार से मुँह मोड़ लिया है। दुनिया भर के अखबारों ,डिजिटल प्लेटफार्म से जो खबरे आती हैं उसे जानकार रोंगटे खड़े हो जाते हैं। भारत के ही कई इलाकों से जो मार्मिक खबरे आती है और सरकार का जो रवैया दिखता है वह लोकतंत्र पर बड़ा सवाल खड़ा करता है