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Indian Political News: खुल गया एस जयशंकर के बेबाकी का राज, विदेश मंत्री का ये राज आपको कर देगा हैरान !

Indian Political News | The secret of S. Jaishankar's outspokenness revealed

Indian Political News: भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर का बेबाक अंदाज तो आपने देखा होगा, कई बार आप भी सोच रहे होंगे कि कोई विदेश मंत्री इतना बेबाक कैसे हो सकता है। तो आज हम इस राज से पर्दा उठाएंगे और आपको बताएंगे जयशंकर के इतने मुखर होने की मुख्य वजह।

लेकिन उससे पहले हम आपको बता दें कि जयशंकर ने एक बार फिर कुछ ऐसा किया है जिससे देशभर में उनकी खूब तारीफ हो रही है।

भारत के विदेश मंत्री हाल ही में जर्मनी में थे, जहां वे अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिकेन के साथ मीडिया से बात कर रहे थे, इसी दौरान एक पत्रकार ने अपने एजेंडे के मुताबिक भारत को नीचा दिखाने के लिए रूस से तेल खरीदने का मुद्दा उठाया, जिसके बाद जयशंकर ने जो जवाब दिया उसे सुनिए।

कहां से जयशंकर को ये बेबाक अंदाज मिला ?

भारतीय विदेश मंत्री का ये जवाब सुनकर दुनिया का हर पत्रकार भारत से सवाल पूछने से पहले जयशंकर का ये जवाब याद रखेगा। पर यहां सबसे बड़ा सवाल ये है कि जयशंकर को ये बेबाक अंदाज मिला कहां से है, आखिर विदेश सचिव को विदेश मंत्री बनाना महज एक राजनैतिक कदम था या उसके पीछे कोई और वजह थी ?

आपको जानकर हैरानी होगी कि आम बच्चों का जीवन जहां खेल-कूद में बीतता है तो वहीं जयशंकर का बचपन विदेश नीति और कूटनीति की बातों के बीच बिता, एस जयशंकर को ये स्टाइल अपने पिता से विरासत में मिला है। जयशंकर के पिता के सुब्रमण्यम एक आईएएस अधिकारी थे और इंदिरा गांधी के काफी करीबी भी थे।

एस जयशंकर ने किया खुलासा

भारतीय विदेश सेवा से लेकर राजनीति तक के अपने सफर के बारे में बात करते हुए जयशंकर ने बताया की “मैं सर्वश्रेष्ठ विदेश सेवा अधिकारी बनना चाहता था। मेरे पिता जो एक नौकरशाह थे वो सचिव बन गए। हालांकि बाद में मेरे पिता को सचिव के पद से हटा दिया गया। साल 1979 में जनता सरकार थी मेरे पिता उस समय के सबसे कम उम्र के सचिव बने थे”

अपने पिता की बात करते हुए जयशंकर बताते हैं कि मेरे पिता बहुत ईमानदार व्यक्ति थे लेकिन राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद उनकी अनदेखी की गई और उनके जूनियर को कैबिनेट सेक्रेटरी बना दिया गया था।

के सुब्रमण्यम लेक्चर पर हुआ था बवाल

के सुब्रमण्यम उस दौर के सबसे तेजतर्रार नौकरशाह थे, उस वक्त उनके एक लेक्चर को लेकर काफी हंगामा हुआ था और वो साल था 1960, इस दौरान लंदन के इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटजिक स्टडिज में एक सेमिनार का आयोजन किया गया था। सेमिनार में के सुब्रमण्यम एक युवा विजिटिंग स्कॉलर के रूप में खड़े होते हैं और “हिरोशिमा से वियतनाम तक पश्चिमी भागीदारी” के मुद्दे पर बोलना शुरू करते हैं, लेक्चर इतना दमदार था की लेक्चर खत्म होते-होते हंगामा भी शुरू हो गया, और फिर क्या था इस घटना के बाद के सुब्रमण्यम को कभी इनवाइट नहीं किया गया।

पद्म भूषण सम्मान लेने से कर दिया था इनकार

के सुब्रमण्यम के बारे में एक और कहावत प्रचलित है, की उन्होंने 1999 के समय में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार को ये कहकर पद्म भूषण सम्मान लेने से इनकार कर दिया था कि नौकरशाहों और पत्रकारों को सरकारी सम्मान नहीं लेना चाहिए।

लेकिन इन सभी बातों के इतर सुब्रह्मण्यम को सबसे ज्यादा इस बात के लिए याद किया जाता है, भारत का परमाणु समझौता भी इनकी ही देन है, नो फर्स्ट यूज़ पॉलिसी भी सुब्रमण्यम की देख-रेख में बनी।

इस ऑर्टिकल में एस जयशंकर के पिता के सुब्रमण्यम का करियर समझने के बाद, शायद आप ये समझ गए होंगे कि भारत के विदेश मंत्री को ये बेबाक अंदाज कहां से मिला है, साथ ही मोदी सरकार का उनको विदेश मंत्री बनाना एक सोची समझी रणनीति का हिस्सा था।

Kamal

Political Editor

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