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Maneka Gandhi-Varun Gandhi: बीजेपी के भीतर मेनका और वरुण गाँधी की राजनीति का सच 

Maneka Gandhi-Varun Gandhi: बीजेपी के भीतर अब सबकुछ ठीक नहीं है। पहले बीजेपी के भीतर कोई विरोधी स्वर नहीं उठते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। कुछ पार्टी में रहते हुए पार्टी से साइड लाइन हैं। वे सांसद भी हैं और पने इलाके में लोकप्रिय भी। लेकिन वे मौन है। वे भी बोलेंगे लेकिन समय आने पर। लेकिन गाँधी परिवार से आने वाले मेनका और उनके पुत्र वरुण कहाँ रुकने वाले ! उनकी अपनी हस्ती है और अपना अंदाज भी। ये चमचे नहीं हैं। चमचई इन्हे पसंद भी नहीं। इनके पास गोदी मीडिया से मिलने की फुर्सत कहाँ ? भाव भी नहीं देते। जो मन में आता है बोलते हैं और बीजेपी में रहकर हर चुनौती का सामना भी करते हैं मेनका और वरुण।

नीतियों पर हमला करने से चूकते नहीं

इधर वरुण कुछ ज्यादा ही बोल रहे हैं। नाम तो सरकार के मुखिया का नहीं लेते लेकिन सरकार के खेल का मजाक बनाने से भी नहीं चूकते। सरकार की नीतियों पर हमला करने से चूकते नहीं। देश के भीतर की असली समस्या पर बात करते हैं तो सरकार को चुभती है और यही चुभन सरकार और वरुण (Varun Gandh) को अलग करती है। बीजेपी सब समझ रही है लेकिन बोलती नहीं। क्या बीजेपी के भीतर किसी नेता की इतनी हाशियत है जो वरुण के सवालों का जवाब दे सके। किसी की नहीं। वरुण पार्टी में रहेंगे या निकाले जायेंगे कोई नहीं जानता। लेकिन अब यह साफ़ हो गया है कि बीजेपी उन्हें अगले चुनाव में टिकट नहीं देगी।

यही हाल मेनका का भी हो सकता है। लेकिन पिछले दिनों माँ बेटे ने यह भी साफ़ कर दिया कि वे चुनाव लड़ेंगे और यूपी की राजनीति को साधेंगे भी। पिछले कुछ दिनों में वरुण और उनकी माँ मेनका ने जो बयान दिए हैं और मुख्यधारा के पत्रकारों को जो भी सुनाया है वह बहुत कुछ कहता है। उनके कथन में आर पार की लड़ाई की बात भी है। और चुनौती देने से लेकर चुनौती स्वीकार करने की भी बातें हैं। फिर भी बीजेपी मौन है। इसकी वजह भी है।  

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बीजेपी कोई फैसला नहीं करना चाहती। खासकर इस गाँधी परिवार के बारे में। मेनका की राजनीति अटल -आडवाणी के समय में शुरू हुई थी। तब वे बीजेपी के लिए बड़ी नेता थी। कांग्रेस से हटकर वे बीजेपी से जुडी थी। उनका अपना कद था। वे कई बार मंत्री भी बनी लेकिन अब कुछ भी नहीं है। संगठन से भी उन्हें अलग कर दिया गया है। वरुण की हालत भी यही है। पहले वे पार्टी के फायर ब्रांड नेता थे। हिंदुत्व का झंडा उठाये घूम रहे थे। लेकिन जब राजनीति का ज्ञान उन्हें हुआ तो तो समझ गए कि यह देश तो सेक्युलर है

BJP पर निशाना साधने से नहीं चूकते

जाति और धर्म की राजनीति बेमानी है और लोगों को असली सवाल से पीछे ले जाने की बात है। जब ये बाते समझ आयी तो वरुण सम्हले। अब बीजेपी पर आक्रमण करने से नहीं चूक रहे। वे जानते हैं कि बीजेपी में अब उनके लिए कुछ भी तो नहीं है फिर लोगों के सामने अपनी बात कहने से क्यों चुके !   

वरुण और मेनका की राजनीति आगे क्या होगी अभी कोई यही जानता। लेकिन उनके द्वार तो हर पार्टी के लिए खुले हैं। कांग्रेस तो उनकी मातृ पार्टी है इसके साथ ही टीएमसी ,सपा और न जाने कितनी पार्टियां उन्हें आने की राह देख रही है। लेकिन अब वरुण जल्दबाजी में नहीं है। वे जानते हैं कि पार्टी उन्हें टिकट नहीं देगी लेकिन पीलीभीत और सुल्तानपुर की जनता उनके साथ है। वे चुनाव लड़ेंगे। इधर कई लोग कह रहे हैं कि वरुण कांग्रेस के साथ जा सकते हैं। ऐसा संभव भी है क्योंकि प्रियंका के साथ उनकी खूब केमिस्ट्री बैठती है। लेकिन मामला यही तक का नहीं है।

गाँधी परिवार के इस मिलान में किसी भी पार्टी नेताओं की जरूरत नहीं। कोई इस पर कोई फैसला कर भी नहीं सकता। सोनिया और मेनका जिस दिन एक होगी सब ठीक हो सकता है। वरुण की राजनीति कांग्रेस के साथ हो सकती है। तब तक कयासों का दौर जारी है और गोदी मीडिया के लोग दुदुम्भी बजाने को अभिशप्त।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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