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घोसी उपचुनाव : प्रचार ख़त्म, इंडिया की और एनडीए की लड़ाई में भ्रमित मतदाता!

Ghosi By-election: यूपी की घोसी सीट पर कल पांच तारीख को उपचुनाव है। प्रचार ख़त्म हो चुका है और बीजेपी और सपा के बीच ठनी हुई है। पूर्वांचल का यह इलाका काफी पिछड़ा हुआ है। दोनों पार्टी के लोग एक दूसरे पर इस इलाके को गरीब बनाने का आरोप लगा रहे हैं लेकिन घोसी की जनता मौन है। कौन सच्चा है और कौन झूठा यह सब जनता जानती है। लेकिन कहती कुछ भी नहीं। सत्ताधारी पार्टी के लोग भी जनता के घर पहुँचकर जाति और धर्म के नाम पर वोट मांग रहे हैं और कह रहे हैं कि प्रतिष्ठा फंसी हुई है, इज्जत जनता के हाथ में ही है। उधर यही कहानी विपक्षी सपा की भी है। सपा के लोग भी बड़ी तादात में घोसी के लोगों की परिक्रमा करते रहे हैं और जातीय गुना भाग के मुताबिक वोट मांग रहे हैं। यहाँ भी जनता कह रही है कि हम तो आपके ही है। चुनाव आप ही जीत रहे हैं।

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लेकिन बीजेपी और सपा के लोगों को चैन कहाँ! उन्हें विश्वास नहीं हो रहा है कि जनता के साथ है। इन पार्टियों को लग रहा है कि अभी तक वे जनता को ठगते रहे हैं और अब जनता उन्हें उल्लू बना रही है। लेकिन दूसरा सच ये भी है कि कल चुनाव के दौरान थोक के भाव में वोट पड़ेंगे। कई लोग ताल भी तकपते नजर आएंगे। कुछ लोग वोट की खातिर हुंकार भी भरेंगे। पेट में अनाज भले ही न हो। घर में सब कुछ ठीक नहीं हो, पैसे के अभाव में बेटे-बेटियों की शादियां भले ही न हो पाती हो, बेटा-बेटी बेरोजगार हों और किसी को भी ढंग से सेहत और पढ़ाई की सुविधा नहीं मिलती हो लेकिन वोट डालने की बाजी लगाने को तैयार है। कह सकते हैं कि लोकतंत्र को जनता ने ही जीवंत रखा हुआ है। नेताओं को लोकतंत्र से क्या मतलब!

आज जो नेता जनता के द्वार पर नाक रगड़ रहा है कल चुनाव परिणाम सामने आने के बाद गायब हो जायेंगे। जो चुनाव जीतेंगे वे होली मनाएंगे और जो चुनाव हारेंगे वे रुदाली जाएंगे। और फिर इसके बाद कोई जनता से नहीं मिलेगा। जीतने वाले उम्मीदवार लखनऊ में जाकर रमेंगे, दलाली करेंगे, चुनाव में खर्च हुए पैसों की वापसी के खेल रचेंगे और जो हार गए हैं वे भी मिलजुल कर कुछ इसी तरह का ताना-बाना रचेंगे। कितने धन बर्बाद हुए, कितने धन कहाँ से आये इससे किसी को क्या मतलब! लोकतंत्र का यही खेल सबको भ्रमित भी करता है और रिझाता भी है।

घोसी के इस चुनाव में इंडिया की प्रतिष्ठा दाव पर लगी है। दाव तो एनडीए की प्रतिष्ठा पर भी लगी हुई है। इस उपचुनाव में ऐसा क्या है जो सबकी प्रतिष्ठा दाव पर है? पांच राज्यों में चुनाव होने हैं। इसके साथ ही अगले साल लोकसभा चुनाव है। इसी बीच एनडीए की तरह ही इंडिया का निर्माण हो चुका है। मरी हुई एनडीए अब ताल ठोक रही है तो नया बना इंडिया गठबंधन भी चुनौती देने को तैयार है। इस चुनाव के जीत हार से किसी भी दल को कोई बड़ा लाभ नहीं होना है लेकिन प्रतिष्ठा दाव पर है। झूठे तौर पर समाज दिखाने के लिए कि अब जनता हमारे साथ खड़ी है। लेकिन याद रखिए इन पूरे खेल में दो लोगों की कोई प्रतिष्ठा दाव पर नहीं है। ये दोनों हैं दोनों पार्टी के उम्मीदवार। वे जीतकर भी हार जायेंगे और हार कर भी आगे बढ़ते रहेंगे। अगर इनके आँखों में पानी होता तो ये दल-बदल ही नहीं करते। इनसे कौन पूछने जाए कि राजनीतिक चरित्र का क्या हुआ?

घोसी चुनाव की चर्चा देशभर में है। हालांकि पांच तारीख को देश के कई राज्यों में उपचुनाव हो रहे हैं लेकिन यूपी की घोसी सीट सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। इस सीट पर बीते छह साल में चौथी बार चुनाव हो रहे हैं। 2017 से 2022 तक के चुनाव में यहाँ से बीजेपी की जीत हुई है। यहाँ से बसपा ने बड़ा दाव खेला है। मायावती ने अपने लोगों को साफ़ कह दिया है कि चुनाव के दिन बसपा के लोग अपने घर पर रहे। वोट डालने नहीं जाए। यह एक ऐसा दाव है जो बीजेपी और सपा दोनों को भारी पड़ रहा है। इस इलाके में दलितों के वोट करीब 90 के पास है। और सभी दलितों ने मायावती के फरमान को मान लिया तो समझ सकते हैं चुनावी परिणाम क्या होंगे? लेकिन चुनाव होंगे तो परिणाम भी आएंगे। लेकिन किस पक्ष में परिणाम जानता है? सपा और बीजेपी वाले झूठ का ऐलान कर रहे हैं और घोसी इस बार मुस्कुरा रहा है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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