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मरुधरा में कांग्रेस का इतिहास,किसी की मेहनत किसी के सिर ताज

Rajsthan Political News: राजस्थान में चुनावी रणभेरी बज चुकी है, लिहाज़ा सभी राजनैतिक पार्टियाँ सियासी बिसात बिछाने में लगी हुई है। खुद को देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी राजनैतिक पार्टी होने का दम भरने वाली ‘भारतीय जनता पार्टी’ में, जहाँ राजस्थान की सत्ता पाने के लिए छटपटाहट दिखाई दे रही है, वहीं कांग्रेस हर कीमत पर सत्ता वापसी की लड़ाई लड़ रही है। भाजपा ने राजस्थान के रण में जहाँ अपने केंद्रीय नेताओं को भी चुनावी मैदान में उतारा है, वहीं गहलोत और पायलट विवाद के भंवर में फंसी कांग्रेस,अपने सूरमाओं को मैदान में उतारने से पहले मंथन पर मंथन किये जा रही है। कांग्रेस चुनाव समिति के मंथन से चुनावी दंगल में क्या नाम निकलते है इसके लिए तो उम्मीदवारों के नामों की घोषणा तक इंतज़ार करना होगा। राजस्थान में इस बार किसकी सरकार बनेगी इसकी भविष्यवाणी तो हम नहीं कर सकते लेकिन राजस्थान के बीते दो दशक के चुनावी परिणामों को देखें तो किसी भी पार्टी की सरकार अभी तक लगातार सत्ता में नहीं रही है। कांग्रेस और सूबे के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के तमाम जीत के दावों पर राजस्थान की यही रिवायत पानी फेरती दिख रही है। पिछले २० सालों में राजस्थान में एक बार कांग्रेस की सरकार बनती है तो दूसरे चुनाव में सत्ता भाजपा के पास रही है। मरुभूमि का ये सियासी रिवाज़, राजस्थान की राजनीती में, जादूगर कहे जाने वाले अशोक गहलोत के सत्ता रिपीट के दावों की हवा निकाल देता है। ऐसा नहीं है की राजस्थानियों का सत्ता परिवर्तन का मिज़ाज ही, सिर्फ गेहलोत के खिलाफ़ हो बल्कि, गेहलोत का राजस्थान की सियासत का सफ़रनामा भी उनके दावों का साथ नहीं देता। दरअसल अशोक गेहलोत का राजस्थान में चुनावी सफर ही कुछ ऐसा रहा है, इसे किस्मत का खेल कहें या कुछ और, लेकिन राजस्थान में जब-जब कांग्रेस गेहलोत के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरी है तब-तब पार्टी ने मुंह की खायी है। अशोक गेहलोत अभी तक तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हैं और जिस तरह से हर बार सत्ता उन्हें मिली है वो किसी जादू से कम नही हैं। अशोक गेहलोत की गिनती राजस्थान के उन गिने चुने कांग्रेसी नेताओं में की जाती है जिनकी मजबूत पकड़ संगठन में न सिर्फ दिल्ली तक है बल्कि गाँधी परिवार में भी अच्छी खासी पेठ रखते है। इसका अंदाजा आप इससे लगा सकते है की वो अब तक तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने है और तीनो ही बार कांग्रेस उनके नाम पर चुनाव नहीं लड़ी थी।

गेहलोत पहली बार 1998 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने

कांग्रेस 1998 का चुनाव पार्टी के सीनियर नेता परस राम मदरेणा के चेहरे पर पर जीती थी लेकिन जब मुख्यमंत्री बनाने की बात आयी तो केन्द्रीय नेतृत्व ने भरोसा जताया अशोक गहलोत पर, इस तरह गेहलोत पहली बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। 2003 का चुनाव कांग्रेस गेहलोत के नाम और काम पर लड़ी लेकिन पार्टी को शिकस्त हाथ लगी भाजपा बहुमत में आयी और वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री बनी।

गेहलोत दूसरी बार 2008 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने

कांग्रेस 2008 का चुनाव प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी के नेतृत्व में लड़ी, किस्मत का खेल देखिये चुनाव में कांग्रेस तो जीती लेकिन सीपी जोशी खुद अपना चुनाव एक वोट से हार गए। जोशी की हार से पार्टी ने एक बार फिर गेहलोत को मौका दिया और इस तरह से वो दूसरी बार किस्मत के चलते राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। 2013 का चुनाव में कांग्रेस फिर गेहलोत के नाम पर चुनावी मैदान में कूदी लेकिन इस बार भी गेहलोत कोई करिश्मा नहीं दिखा पाए पार्टी चुनाव हार गयी और सत्ता एक बार फिर भाजपा के जरिये वसुंधरा तक पहुंची वसुंधरा एक बार फिर राजस्थान की मुख्यमंत्री बानी।

गेहलोत तीसरी बार 2018 में राजस्थान के मुख्यमंत्री बने

कांग्रेस ने 2018 का चुनाव युवा नेता और पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट की अगुवायी में ना सिर्फ लड़ा बल्कि जीता भी लेकिन इस बार भी जब मुख्यमंत्री के नाम की बात हुई तो पार्टी ने युवा जोश को दरकिनार कर अनुभव को तरजीह दी और इस तरह अशोक गेहलोत तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री बने। पार्टी में मजबूत पकड़ के चलते ही वो हर बार मुक्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो जाते है और हर बार ‘हार कर जीतने’ की उनकी इसी कला के चलते ही शायद उन्हें सियासी जादूगर कहा जाता है।


कांग्रेस ने एक बार फिर अपने अनुभवी नेता और मौजूदा मुख्यमंत्री अशोक गेहलोत पर ही दाव लगाया है तो बीजेपी यहाँ भी प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर ही दम भर रही है। चुनाव के नतीजे ये तय करेंगे की अशोक गेहलोत अब तक अपने नेतृत्व में हार के दाग इस बार धो पाएंगे या एक फिर चुनावी परिणाम उनके खिलाफ ही आएंगे।

Nagendra Bhati

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