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UP politics: आजम खां के सियासी किले ‘स्वार’ में आखिरी की ठोंकने को आतुर भाजपा !

उत्तर प्रदेश की जिन 2 विधानसभा सीटों पर 10 मई को उपचुनाव होने जा रहे हैं, उनमें रामपुर जनपद की स्वार विधानसभा और मिर्जापुर जनपद की छानबे विधानसभा सीट शामिल हैं। रामपुर की स्वार सीट सपा नेता आजम खान के बेटे अब्दुल्लाह आजम की विधानसभा की सदस्यता रद्द होने व छानबे विधानसभा सीट से भाजपा गठबंधन के अपना दल (एस) के विधायक राहुल प्रकाश कौल के निधन से रिक्त हुई है।

इन दोनों विधानसभा सीटों पर उपचुनाव के लिए अधिसूचना जारी हो चुकी है । इन सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए 20 अप्रैल तक नामांकन होंगे। 24 अप्रैल तक नाम वापस लिये जा सकेंगे। इन दोनों सीटों पर 10 मई को मतदान होगा, जबकि चुनाव परिणाम 13 मई को घोषित किया जाएगा।

सत्ता की दृष्टि से भाजपा के लिए इन दोनों सीटों पर उपचुनाव में जीत या हार कोई मायने नहीं रखती, लेकिन फिर भी भाजपा की नजर रामपुर की स्वार सीट पर टिकी है। इसका कारण यह है कि भाजपा सपा नेता आजम खां की सियासी किले के आखिरी ताबूत (स्वार) में कील ठोकने को आतुर है। भाजपा इस सीट पर उपचुनाव में जीत हासिल करके आज़म खां की राजनीतिक विरासत को ही खत्म कर देना चाहती है।

आजम खान के बेटे अब्दुल्लाह आजम 2 बार स्वार सीट से विधायक रह चुके हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश दोनों ही बार उनकी विधायक सभा सदस्यता रद्द हो गयी। इस बार शायद ही आज़म खां अपने परिवार के किसी सदस्य की चुनाव मैदान में उतारने की हिम्मत जुटा पाएं, इसलिए भाजपा की रणनीति है कि जिस तरह से आज़म खां की लोकसभा सदस्यता समाप्त होने पर उनकी रामपुर सीट भाजपा ने छीनी, उसी तरह से उपचुनाव में उनके बेटे अब्दुल्लाह आज़म की सदस्यता रद्द होने से रिक्त स्वार सीट भी भाजपा कब्जा जमा ले, तो यह आज़म की सियासी किले के ताबूत में अंतिम कील गाढने में सफल होगी।

उत्तर प्रदेश की सियासत में कई दशक तक अपनी धमक रखने वाले जनपद रामपुर के रहने वाले आजम खां इस समय राजनीति के क्षेत्र में ही नहीं, अपने ही शहर रामपुर में भी बेगाने हो गए हैं। राजनीतिक रूप से आज उनकी कोई हैसियत नहीं रह गई है। कहने को तो वे इस समय समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हैं, लेकिन न तो समाजवादी पार्टी मुखिया अखिलेश यादव उन्हें कोई महत्व दे रहे हैं, और ना ही आज़म खां अब पार्टी की गतिविधियों में कोई रूचि ले रहे हैं।

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आजम खां के राजनीतिक सितारोंरों के गर्दिश में होने का आलम यह है कि इस समय उनके परिवार का कोई भी सदस्य न संसद सदस्य और न ही विधानसभा ही रह गया है। जबकि एक समय में आज़म, उनकी पत्नी व बेटा लोकसभा व विधानसभा सदस्य रहे थे।आज़म खां 10 बार लोकसभा अथवा विधानसभा सदस्य रहे हैं, लेकिन आज कुछ नहीं हैं। जनता ने उन्हें जरूर अपना जनप्रतिनिधि चुना, लेकिन कानून ने उनसे उनकी सांसदी छीन ली।

देश की राजनीति में यह श्रेय भी आजम खां के परिवार को जाता है कि जिसमें आपराधिक मामले में सजा होने पर बाप (आज़म खां) की उनकी लोकसभा सदस्यता और बेटे (अब्दुल्लाह आज़म) की एक बार नहीं बल्कि लगातार दो बार विधानसभा की सदस्यता रद्द की जा चुकी है। अब देखना होगा कि क्या आज़म खां फिर से स्वार सीट को अपने किसी करीबी कोजिताने में कामयाब होते हैं या फिर इस बार उन्हें फिर भाजपा की रणनीति के आगे हार का मुंह देखना पड़ेगा।

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