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Fake Encounter: मृतक के परिवार ने 31 साल तक मुकदमा लड़ा, दरोगा अब जेल गया

Bareilly: उत्तर प्रदेश के बरेली जनपद में एक फर्जी मुठभेड़ मामले में मृतक के परिवार ने करीब 31 साल तक अदालत में मुकदमे की पैरवी की। तब कहीं जाकर मृतक का परिवार को फर्जी मुठभेड़ करने वाले दरोगा को जेल में भिजवाने के लिए कामयाबी मिली है। जेल भेजा गया दरोगा पुलिस विभाग से सेवानिवृत्त हो चुका है।

फर्जी एनकाउंटर के मामले में सेवानिवृत दरोगा दोषी करार देने मृतक के परिवार वालों को न्यायालय से न्याय मिलने की उम्मीद बढ़ी है। उन्होंने कहा कि उनके मां और मृतक वकील भाई के जो सपने थे, अब वे उसे पूरा कर सकेंगे।

बरेली शहर के किला थाना क्षेत्र के साहूकार इलाके के रहने वाले वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद जौहरी के छोटे भाई मुकेश जौहरी उर्फ लाली को बड़े बाजार स्थित वाइन शॉप की दुकान पर लूटपाट करने का आरोप में किला थाने के तत्कालीन सब इंस्पेक्टर युधिष्ठिर सिंह ने 23 जुलाई, 1992 को साहूकारा क्षेत्र के मुकेश जौहरी उर्फ लाली को आत्मरक्षा में एनकाउंटर में ढेर करने का दावा किया था। पुलिस के तमाम अधिकारियों के सामने उसने सीना चौड़ा कर इसका दावा किया था। लेकिन घटना के चश्मदीद गवाह के रुप में मुकेश जौहरी का बड़ा भाई पंकज जौहरी घटना स्थल पर मौजूद था। उसने न्यायालय में अपना बयान दर्ज कराया था

मुकेश जौहरी उर्फ लाली के साथ हुई घटना की जानकारी भाई पंकज जोहरी को लगी तो वो सीधे किला थाने के लिए पहुंच गया। वहां पर उनका भाई घायल अवस्था में तड़प रहा था। पंकज ने जानबूझकर गोली मारने का आरोप लगाया तो पुलिस सब इंस्पेक्टर युधिष्ठिर सिंह ने उसे हिरासत में ले लिया।तब उसके भाई की सांस चल रही थी। फर्जी मुठभेड़ को शिकायत पर मामले की जांच सीबीसीआईडी को सौंपी गयी थी।

सीबीसीआईडी को दिए गए बयान में पंकज ने कहा था कि उसके भाई मुकेश को किला थाना परिसर के अंदर दरोगा ने दो गोलियां और मार दीं थीं, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी। लेकिन पुलिस ने मुकेश उर्फ लाली को मुठभेड़ में ढेर करने का दावा किया था और एफआईआर में मुठभेड़ ही दर्शायी गयी थी। लेकिन लाली के परिवार के लोगों ने इस फर्जी मुठभेड़ संबंधी मुकदमे की अदालत में जोरदार पैरवी शुरू कर दी।

मृतक के भाई अरविन्द जौहरी एडवोकेट थे और उन्होंने 1992 में नगर निगम का चुनाव में अपने वार्ड से पार्षद का चुनाव लड़े थे। लेकिन हार होने के बाद से उनकी प्रतिद्वंददियों से रंजिश शुरू होंगी थीं ।

मुकेश उर्फ़ लाली के खिलाफ मारपीट की धारा 323, 504, 506 सहित 307 का एक मुकदमा दर्ज था। उस पर कुल चार एफआईआर दर्ज की गई थीं। इसके बाद पुलिस ने उसे फर्जी एनकाउंटर दिखाकर उसे मौत की नींद सुला दिया था।

23 जुलाई 1992 को मुकेश उर्फ लाली के भाई अरविंद की पत्नी कल्पना की तबीयत खराब हो गई थी । वे अपने भाई को किला थाना स्थित बमनपुरी से बुलाने जा रहे थे। इसी दौरान किला थाने के सब इंस्पेक्टर सादा वर्दी में सरकारी रिवाल्वर लेकर उसका पीछा कर रहे थे। उन्होंने दरवाजे के पास उसको पहली गोली मार दी गई।

घटना को करीब रात्रि 8 बजे के आसपास अंजाम दिया गया था।

मृतक मुकेश जौहरी उर्फ लाली की मां चंदा जौहरी ने इसकी शिकायत उच्च अधिकारियों से घटना के 15 दिन पहले की थी। उन्होंने अपने बेटे के फर्जी एनकाउंटर में मारे जाने की आशंका पहले से ही जतायी थी।

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पुलिस ने जिस जगह पर एनकाउंटर दर्शाया था, वहां बड़े बाजार स्थित वाइन शॉप के मालिक राजेश जयसवाल ने अपनी दुकान पर घटना होने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं उसने सीबीसीआईडी को शपथ पत्र देकर कहा था कि उसकी दुकान पर कोई भी इस तरह की घटना नहीं हुई इसके बाद सीबीसीआईडी के अधिकारियों इस मुकेश एनकाउंटर को फर्जी एनकाउंटर मानकर जांच शुरू कर दी। जांच में युधिष्ठर सिंह पर आरोप सही पाए गए। वहीं इंस्पेक्टर वीके उपाध्याय बरी कर दिए गए।

सीबीआईसीडी के चार्जशीट लगने के बाद युधिष्ठर को निलंबित कर दिया गया था। तब कोर्ट ने उसे फरार घोषित करते हुए कुर्की वारंट जारी किए थे। इज्जतनगर के नगरिया परीक्षित में पुलिस उसकी संपत्ति कुर्क करने गई, तो वह वहीं मिल गया। पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया और एडीजे (नवम) के यहां पेश किया, जहां से उसे भेज दिया गया।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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