NDA vs INDIA: राजनीति तो झांसे पर ही दौड़ती है। झांसा मतलब गफलत पैदा करना या भ्रम पैदा करके अपना उल्लू सीधा करना है। राजनीति इसी का नाम है। यहां हर नेता झांसा प्रसाद की तरह ही है। कोई किसी से कम नहीं। कोई दल भी एक दूसरे से कमजोर नहीं। हर किसी के पास झांसा देने की कला है और झांसा जितना संभव है। यह सर्वे और विश्लेषण का विषय हो सकता है कि मौजूदा राजनीति में सबसे बड़ा झांसा देने वाला नेता कौन है? किनकी बातों पर जनता ज्यादा यकीन करती है और बाद में पता चलता है कि यह सब झांसा ही था।
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इधर सबसे बड़े झांसा देने वाले नेताओं में शरद पवार की गिनती चल रही है। हालांकि वे देश के सबसे माहिर नेताओं में गिने जाते हैं और महाराष्ट्र में उनके सामने तो कोई टिकता तक नहीं। इन दिनों उनके झांसे से देश की जनता बेहाल है। पहले लोग मानकर ही चलते थे की झांसा देने वालों में पीएम मोदी, अमित शाह, नीतीश कुमार, लालू यादव से लेकर कई बड़े नेता शामिल है लेकिन इधर कुछ महीनो में सबसे बड़े झांसा देने वाले नेताओं में शरद पवार उभरे हैं।
जुलाई महीने से शरद पवार (Sharad Pawar) कुछ ज्यादा ही झांसा दे रहे हैं। एनसीपी में टूट हुई। उनके भतीजे अजित पवार पहले 9 विधायकों के साथ शिंदे सरकार में जा मिले। मंत्री भी बन गए और फिर इसके बाद कई और विधायक और सांसद, नेता अजित पवार के नारे लगाते रहे। एकाएक यह सब हुआ। शरद पवार को पार्टी से बाहर भी किया गया। अध्यक्ष नाम के लिए वे खुद के नाम की घोषणा की गई। पार्टी और संगठन पर दावा किया गया। मामला चुनाव आयोग तक पहुंचा। कई मामले विधान सभा स्पीकर तक पहुंचे। लेकिन धीरे-धीरे सब कुछ शांत भी हो गया।
शरद पवार (Sharad Pawar) से पूछा जाए कि एनसीपी में यह विद्रोह नहीं तो और क्या था? और अगर यह विद्रोह नहीं है तो फिर राजनीतिक विद्रोह किसे कहा जाता है? और फिर अगर विद्रोह नहीं ही था तो उन्होंने चुनाव आयोग में शिकायत क्यों की? विधान सभा स्पीकर को क्यों पत्र लिखा? हो सकता है कि इन सभी सवालों के जवाब शरद पवार साहब के पास हो लेकिन क्या जनता उन्हें अब उसी नजरिये से देख रही है जैसे पहले देख रही थी।
शरद पवार (Sharad Pawar) एनडीए को भी झांसा दे रहे हैं और इंडिया वालाें को भी। एनडीए अभी इसलिए चुप है क्योंकि महाराष्ट्र में उसकी सरकार अप्रत्यक्ष रूप से पवार परिवार के सहयोग से चल रही है और चलती भी रहेगी। हो सकता है कि लोकसभा चुनाव के समय सीट बंटवारे पर कुछ खटपट हो और फिर झांसा साफ़ हो जाए। यह अगले साल के विधान सभा चुनाव में सब साफ़ हो जाए और झांसा भी तार-तार हो जाए!
एक बड़ी बात तो यह है कि एनसीपी के जो नेता शिंदे सरकार के साथ खड़े हैं सभी जांच के दायरे में हैं। अगर ये सभी नेता बीजेपी के साथ नहीं जाते तो इनका जेल जाना तय था। अब कम से कम ये सभी नेता सुरक्षित तो है। आगे सब देखा जाएगा। राजनीति का जब कोई चरित्र ही नहीं होता तो पलटते कितना समय लगता है। यही वजह है जो शरद पवार खेलते नजर आ रहे हैं। वे इंडिया के साथ भी खड़े हैं और एनडीए के साथ भी और इस बात को डॉन संगठन भलीभांति मानता है, जानता है और समझ भी रहा है लेकिन मौजूदा राजनीति अगर झांसे के जरिये ही आगे चलती है तो यह चलती रही। नेता को कोई भ्रम नहीं है, जनता को भ्रमित रखना है। तभी तो शरद पवार (Sharad Pawar) यह भी एनसीपी में कोई टूट नहीं है और अजित पवार आज भी पार्टी के बड़े नेता हैं। इसके मायने आप निकालते रहिये।