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Story Holi Festival Celebration history: भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद की कहानी

why do we celebrate the festival of holika

Why Holi Is Celebrated: प्रेम एक ऐसी भावना है जो संपूर्ण संसार को सुंदर बना देती है। उसे जीने योग्य बना देती है। और उसमें भी अगर प्रेम भगवान से हो तो जीवन के सभी रास्ते अपने आप सरल हो जाते हैं। अपने आराध्य से प्रेम की ऐसी वह एक भावना को दर्शाता है होलिका का ये पवन त्यौहार।

आज से कई दशक पहले भक्त और भगवान के ऐसे ही एक प्रेम, समर्पण और भक्ति भावना का साक्षी बना था ये संसार, जिसे आज हम लोग होलिका के रूप में मनाते हैं।

ये कहानी है भगवान विष्णु के परम भक्त प्रहलाद की।

असुर कुल में एक राजा हुआ करते थे जिनका नाम हिरण्यकश्यप था। हिरण्यकश्यप ने कई वर्षों तक भगवान ब्रह्मा को खुश करने के लिए कठिन तप किया और उनकी आराधना की। सर्दी, गरमी, धूप, छाँव, आँधी, तूफ़ान, बर्फ़। उसके सामने बहुत सी कठिनइयां आई लेकिन उसने अपने तप को भंग नहीं होने दिया।

ब्रह्मा जी के वचन सुनकर हिरण्यकश्यप मन ही मन प्रसन्न हुआ। उसकी मुस्कुराहट में उसकी भक्ति के पीछे लालसा साफ दिखाई पड़ रही थी। वो कहते हैं ना जब भक्ति किसी स्वार्थ से की जाती है तो उसके परिणाम भी भयानक ही निकलते हैं। ठीक ऐसा ही हुआ हिरण्यकश्यप के साथ।

हिरण्यकश्यप ने भगवान ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मांगा। लेकिन भगवान ब्रह्मा ने ये कह कर उसे ये वरदान देने से मना कर दिया कि इस सृष्टि की रचना भले ही मैंने की हो, लेकिन मेरी भी कुछ सीमाएं हैं, में किसी को भी अमर होने का वरदान नहीं दे सकता। इसके अलावा तुम मुझसे जो भी मांगोगे वो मैं तुम्हें दूंगा।

हिरण्यकश्यप ने होशियारी दिखाई, उसने कुछ देर तक सोचा फिर बोला तो ठीक है भगवन आप मुझे ऐसा वरदान दीजिए कि ना तो मे मेरे घर के अंदर मरू ना ही घर के बाहर, मेरी मृत्यु का कारण ना तो कोई मनुष्य बने ना वह कोई जानवर हो, ना मेरी मृत्यु आकाश में हो ना ही धरती पर, ना में अस्त्र से मरु ना शास्त्र से और ना ही मेरी मृत्यु दिन में हो ना रात को।

हिरण्यकश्यप की बातें सुनकर भगवान ब्रह्मा को उसकी चालाकी का अंदेशा हो गया था। भगवान ब्रह्मा मंद मंद मुस्काए और फिर तथास्तु बोलकर अंतर्ध्यान हो गए।

भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त करने के बाद हिरण्यकश्यप में अहंकार और भी अधिक बढ़ गया। अहंकार में अंधे होके हिरण्यकश्यप ने सोचा कि अब उसे कोई मार नहीं सकता अब वो अमर हो चूका है। हिरण्यकश्यप ने पृथ्वी पर अत्याचार करना शुरू कर दिया। वो संपूर्ण सृष्टि को अपने अधीन करना चाहता था, और ऐसा हुआ भी। हिरण्यकश्यप के अतंक से भयवित होकर संपूर्ण सृष्टि उसकी पूजा करने लगी थी।

लेकिन कहते हैं ना भगवान की माया के सामने कहा किसी का वश चलता है।

जिस हिरण्यकश्यप के डर से पूरी सृष्टि उसकी पूजा करने लगी थी उसी हिरण्यकश्यप के घर उसका पुत्र अपने पिता की जगह उनके दुश्मन भगवान विष्णु की पूजा करने में भक्ति मगन था। जब इस बात से क्रोधित हिरम्यकश्यप ने प्रहलाद से सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु की भक्ति को बंद करने के लिए कहा, और अपनी भक्ति करने को कहा तो प्रहलाद ने उत्तर दिया कि मेरे लिए सिर्फ एक ही भगवान है भगवान विष्णु में सिर्फ उनकी ही भक्ति करूंगा और यदि आप भी अपने पापों से मुक्ति चाहते हैं तो आप भी भगवान विष्णु की भक्ति शुरू कर दीजिए, वे बड़े दयालु हैं, आपको जरूर शमा करेंगे।

प्रहलाद की बातें सुनकर हिरण्यकश्यप और भी अधिक क्रोधित हो उठा, उसने सिपाहियों को आदेश दिया कि प्रहलाद को बंदी बना ले और उसे बाल पूर्वक श्री हरि की भक्ति को बंद करने तक यातनाएं देते रहैं।

राजा के आदेश पर सिपाहियों ने प्रहलाद पर खूब जुल्म किये, यातनाएं दी तरह तरह से कष्ट पहुचाएं, लेकिन प्रहलाद ने भगवान विष्णु की भक्ति करना बंद नहीं किया। जब इस बात की भनक राजा को लगी तो हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मृत्यु दंड देने का आदेश दिया।

राजा के आदेश का पालन करते हुए सिपाहियों ने प्रहलाद को एक कारागार में बंद कर दिया और उसमें बहुत सारे सांप छोड़ दिए। लेकिन भगवान विष्णु की माया देखिए। जिन सपनों को हत्‍या करने के लिए छोड़ दिया वे सर्प श्री हरि के ही वंसज निकले। प्रहलाद को डसने की जगह उन्होनें प्रहलाद की रक्षा करना शुरू कर दिया।

इस बात की चर्चा हर तरफ होने लगी की हिरण्यकश्यप अपने पुत्र को केवल इसलिए मरना चाहता है क्योकीं वो भगवान विष्णु की भक्ति करता है, लोग हिरण्यकश्यप के बारे में बातें करने लगें।

होलिका दहन

इस बात की खबर जब हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को लगी तो उसने बोला कि भैया आप क्यों चिंता करते हैं। मुझे वरदान में एक ऐसी चादर मिली है जिसमें मैं कभी भी जल नहीं सकती, बस एक अग्नि कुंड प्रज्वलित करिये मैं उसमें प्रहलाद को लेकर बैठ जाऊंगी।

राजा ने ऐसा ही किया, उसने एक अग्निकुंड प्रज्वलित करवाया और होलिका वो चादर ओढ़ कर प्रहलाद को अपनी गौद में बैठाकर उस अग्नि कुंड में जाके बैठ गई। लेकिन कहते हैं ना “जा को राखे साइयां, मार सके ना कोय”। भगवान विष्णु ने ऐसी लीला दिखाई कि वो चादर होलिका के ऊपर से उड़कर प्रहलाद के ऊपर जा गिरी। जिससे उस अग्नि कुंड प्रहलाद तो बच गया और होलिका जल कर मर गई। तभी से पुरे संसार में होलिका दहन का त्यौहार मनाया जाने लगा।

भगवान विष्णु नरसिंघ अवतार में प्रकट

जब हिरण्यकश्यप की प्रलाद को मरने की सारी कोशिशें नाकाम हो गयी, तब हिरण्यकश्यप ने स्वयं प्रलाद को मरने का फैसला किया। उसने सिपाहियों को प्रहलाद को उसके समक्ष लाने का आदेश दिया। हिरण्यकश्यप प्रहलाद को लेकर अपने महल की चौखठ पर पहुच गया और बोला “कहा हैं तुम्हारा विष्णु” प्रहलाद मुस्कुराया और बोला वो तोह हर कण में हैं। आप बस ॐ नमो भगवते वासुदेवाये नमः का सच्चे मन से जप कीजिये। हिरण्यकश्यप बोला की अगर वो हर जगह है तोह इस स्तम्ब में भी होंगा उसने पूरी ताकत लगाकर उस स्तम्ब को तोड़ दिया उस स्तम्ब के भीतर से एक अजीब सी आकृति निकली। भगवन विष्णु अपने नरसिंघ अवतार में प्रकट हुए और हिरण्य कश्यप को अपनी जंघा पर लेटकर अपने नाखुनो से उसका सीना चीर दिया।

वो ना तो घर के अंदर मरा ना ही घर के बाहर उसका वध घर की चौखट पर हुआ, उसरी मृत्यु का कारण ना तो कोई मनुष्य बना ना कोई जानवर नरसिंह भगवान सिंह के सर और मनुषय के धड़ के रूप में थे, ना उसकी मृत्यु आकाश में हुई ना ही धरती पर वो मरतो वक्त नरसिंह भगवान की जंघा पर था , ना वो अस्त्र से मरी ना शास्त्र से उसका वध नरसिंह भगवान के नाखुनों से हुआ और ना ही वो दिन में मरा ना ही रात को उसरा वध संधा के समय हुआ, और उसका वरदान भी भांग नहीं हुआ। और यही कारण है की होलिका दहन को अच्छाई पर बुराई की जित के रुप में मनाया जाता है।

Anushka Chaudhary

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