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Mukhtar ansari death news Highlights Today: शार्प शूटर और बाहुबली माफिया मुख्तार अंसारी की इस कहानी से अनजान लोग

This story of sharp shooter and Bahubali mafia Mukhtar Ansari is interesting to many people.

Mukhtar ansari death news Highlights Today: पूर्व बाहुबली विधायक मुख्तार अंसारी की 28 मार्च को बांदा जेल में मौत हो गई थी. रात में तबीयत बिगड़ने पर माफिया मुख्तार को बांदा मेडिकल कॉलेज ले जाया गया जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. अस्पताल प्रशासन ने मुख्तार की मौत का कारण हार्ट अटैक बताया है. लेकिन उनके परिवार वालों ने गंभीर आरोप लगाए हैं. फिलहाल उनकी मौत का रहस्य अनसुलझा है.

लेकिन आतंक का पर्याय रहे गैंगस्टर नेता मुख्तार अंसारी की मौत के साथ ही अपराध और उसकी राजनीति से सांठगांठ के एक युग का एक अध्याय समाप्त हो गया है. उस पर हत्या से लेकर रंगदारी तक के 65 मामले दर्ज थे. मुख्तार 5 बार विधायक रहे. आइए जानते हैं इस लेख के माध्यम से माफिया मुख्तार अंसारी (mukhtar ansari) की जिंदगी से जुड़े अनसुने किस्से…

25 साल की उम्र में दर्ज हुआ हत्या का मामला

यूपी के गाजीपुर जिले के एक प्रतिष्ठित और सम्मानित परिवार से ताल्लुक रखने वाले क्राइम किंग मुख्तार अंसारी की जिंदगी काफी उतार-चढ़ाव भरी रही है. अचूक निशानेबाज के रूप में जाने जाने वाले मुख्तार अंसारी ने मुहम्मदाबाद से ग़ाज़ीपुर तक का सफर एक छोटे ठेकेदार के रूप में शुरू किया. उस समय वह मोटरसाइकिल चलाते थे. जून 1963 में जन्मे मुख्तार के खिलाफ हत्या का पहला मामला साल 1988 में (महज 25 साल की उम्र में) दर्ज किया गया था. पुलिस डायरी के मुताबिक मुख्तार अंसारी से जुड़े लोगों के पास एके-47, 56, कई तरह की विदेशी राइफलें और महंगी मैग्नम पिस्तौलें थीं.

जेल में रहते हुए उपचुनाव लड़ा, मुख्तार हार गए

1991 में कल्याण सिंह के कार्यकाल के दौरान पंजाब और हरियाणा में विश्व हिंदू परिषद के कोषाध्यक्ष और कोयला कारोबारी नंदकिशोर रूंगटा के अपहरण के बाद मुख्तार अंसारी फरार था. कहा जाता है कि इस दौरान उन्होंने हथियारों का बड़ा जखीरा इकट्ठा कर लिया था. उनके बढ़ते रुतबे को देखकर साल 1994 में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी दोनों ने मुख्तार अंसारी को अपने पाले में लाने की कोशिश की थी. साल 1994 में mukhtar ansari ने जेल में रहते हुए ग़ाज़ीपुर उपचुनाव लड़ा, लेकिन हार गए. इस चुनाव में राजबहादुर ने जीत हासिल की थी. इसके बाद साल 1995 में मुख्तार अंसारी के भाई अफजाल अंसारी समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये.

अफजाल के सपा में आने के बाद मुख्तार का राजनीतिक कद बढ़ गया

भाई अफजाल के सपा में शामिल होने के साथ ही मुख्तार अंसारी का राजनीतिक कद भी बढ़ने लगा. उनके खिलाफ मुकदमे वापस लेने की प्रक्रिया शुरू हो गई थी. कहा जाता है कि इसी दौरान मुख्तार अंसारी की ग़ाज़ीपुर में एक आईपीएस अधिकारी से झड़प हो गई थी. राजनीतिक दबाव के आगे न झुकते हुए उन आईपीएस अधिकारियों को लंबी छुट्टी पर जाना पड़ा. फिरौती के लिए अपहरण, हत्या और रंगदारी जैसे मामलों में आरोपी मुख्तार अंसारी को मायावती और मुलायम ने छूट दे रखी थी. उसने जौनपुर, वाराणसी, गाजीपुर, मऊ समेत एक दर्जन जिलों में अपना राजनीतिक, आपराधिक और आर्थिक साम्राज्य फैला रखा था. 1996 में मुख्तार अंसारी विधानसभा पहुंचे. धीरे-धीरे मुख्तार अंसारी का प्रभाव काफी बड़ा हो गया था. जिसके चलते उनकी सरकार की आलोचना भी हुई थी.

जब पूर्व कांग्रेस सांसद राजेश मिश्रा की हत्या की साजिश रची गई थी

साल 2004 में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने 2 ऐसे लोगों को गिरफ्तार किया था, जो सेना छोड़कर मुख्तार अंसारी को चोरी-छिपे एलएमजी और कारतूस मुहैया करा रहे थे. इस पर एसटीएफ के शैलेन्द्र सिंह ने मुख्तार अंसारी के खिलाफ कार्रवाई की अनुमति मांगी थी. लेकिन अनुमति न मिलने के कारण उन्हें पुलिस की नौकरी से इस्तीफा देने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसके बाद जुलाई 2005 में एसटीएफ और जौनपुर पुलिस ने कुछ अपराधियों से पूछताछ की. उस पूछताछ के दौरान आरोप लगा था कि मुख्तार अंसारी वाराणसी के सांसद राजेश मिश्रा की हत्या की साजिश रच रहे हैं. राजेश मिश्रा फिलहाल बीजेपी में शामिल हो गए हैं.

माफिया मुख्तार अंसारी की दुश्मनी थी ब्रिजेश सिंह से

इन तमाम साजिशों, हमलों, साजिशों, रंगदारी, अपहरण के आरोपों और अपना राजनीतिक कद बढ़ाने की कोशिशों के साथ-साथ मुख्तार अंसारी की ब्रिजेश सिंह से दुश्मनी का सफर भी जारी रहा. दोनों गिरोहों के बीच वर्चस्व की लड़ाई गहराती गई। इन दोनों गिरोहों ने जातीय आधार पर युवाओं को एकजुट करने की कोशिश की और उन्हें सफलता भी मिली. इसका सबसे ज्यादा फायदा mukhtar ansari ने उठाया. मुख्तार अंसारी (mukhtar ansari ) ने यादव, भूमिहार और मुसलमानों का गठबंधन बनाया था. इसके चलते अफजाल अंसारी काफी देर तक विधानसभा पहुंचते रहे. जैसे-जैसे पूर्वांचल में जातीय जहर फैला, ब्रिजेश सिंह और त्रिभुवन सिंह कमजोर होते गए और मुख्तार अंसारी की ताकत मजबूत होती गई.

Prachi Chaudhary

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