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आखिर सीएम हेमंत सोरेन ने सरना धर्म कोड को लेकर क्यों लगाईं राष्ट्रपति मुर्मू से गुहार ?

Political News: इधर नई संसद को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष इ घमासान मचा हुआ है। सत्ता पक्ष संसद भवन का उद्घाटन पीएम मोदी से कराने पर तुला है जबकि विपक्षी राष्ट्रपति से उद्घटान कराने की मांग करते हुए समारोह का बहिष्कार कर दिया है। यह देश की अपूर्व घटना है और ऐतिहासिक कहानी भी। संसद लोकतंत्र का मंदिर होता है लेकिन जब संसद को लेकर ही पक्ष और विपक्ष लड़े तो जनता क्या करे ? पूरी दुनिया इस लड़ाई को देख रही है। उधर इस खेल से दूर राष्ट्रपति मुर्मू झारखंड की यात्रा पर हैं। आदिवासी समाज से मिल रही है और कई कार्यक्रमों में शामिल हो रही हैं। बता दें कि मौजूदा राष्ट्रपति मुर्मू भी आदिवासी समाज से ही आती है। देश के लिए यह गौरव की बात है।

उधर झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कल राष्ट्रपति मुर्मू से एक कार्यक्रम के दौरान मुलाक़ात की और आदर के साथ महामहिम से सरना धर्म कोड की मांग की। हेमंत सोरेन ने महामहिम से कहा कि सरना धर्म कोड की मांग लम्बे समय से की जा रही है। आप अपने स्तर से इसे देखें। यह कोड आदिवासियों के लिए जीवन मरण से जुड़ा है।

हेमंत सोरेन ने कहा कि झारखंड विधान सभा ने सरना धर्म कोड पास करके केंद्र को भेजा है। उसे संसद से पारित कराने की मांग की। सोरेन ने राष्ट्रपति के समक्ष कहा कि झारखंड के आदिवासी इलाके की हो ,मुंडारी और कुड़ुख भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए भी केंद्र को प्रस्ताव भेजा गया है। इसे भी स्वीकृति दिलाई जाए। सोरेन ने कहा कि आदिवासियों का वजूद बचाने के लिए इन मानगो की मंजूरी जरुरी है।

बता दें कि आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की मांग काफी पहले से क जा रही है। सरना धर्म कोड की मांग का मतलब ये है कि देश में होने वाली जनगणना के दौरान प्रत्येक व्यक्ति के लिए जो फॉर्म भरा जाता है उसमे दूसरे सभी धर्मो की तरह ही आदिवासियों के धर्म का जिक्र करने के लिए अलग से एक कॉलम बनाया जाए। जिस तरह से हिन्दू ,मुस्लिम ,सिख और ईसाई धर्म के लोग अपने धर्म का औलख जनगणना के फार्म में करते हैं उसी तरह आदिवासी भी अपने सरना धरम का उल्लेख कर सके। अभी तक आदिवासी हिन्दू धर्म कोड का ही इस्तेमाल करते रहे हैं जबकि देश के अधिकतर आदिवासी सरना धरम कोड की मांग भी करते रहे हैं। वे यह मानते हैं कि हिन्दू नहीं हैं वे आदिवासी है और उनका धरम विल्कुल ही अलग है। वे प्रकृति के पूजक हैं।

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यह भी बता दें कि झारखंड विधान सभा में 11 2020 को ही सरना धर्म कोड को लागू करने की मांग का प्रस्ताव पारित किया गया था। यह प्रस्ताव केंद्र के पास मंजूरी के लिए भेजा गया लेकिन अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं हुआ है। बता दें कि सरना धरम कोड की माँगत बीजेपी की भी है और सभी पार्टियों की भी। फिर इसे अभी तक मंजूरी नहीं मिली है। कहा जा रहा है कि संघ के लोग अलग धर्म कोड का विरोध कर रहे हैं। संघ के लोग मानते हैं कि आदिवासी हिन्दू हैं और यही वजह है कि संघ बड़े स्तर पर आदिवासियों के बीच काम भी करते हैं। लेकिन आदिवासी सरना धर्म की बात करते रहे हैं। उधर बंगाल सरकार ने भी आदिवासियों के लिए सरी और सरना धरम कोड की मांग केंद्र से कर राखी है। विधान सभा से प्रस्ताव पास कराकर केंद्र को भेजा भी जा चूका है लेकिन केंद्र सरकार अभी तक मौन है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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