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बिहार में जातीय सर्वेक्षण के बाद बीजेपी की बदली रणनीति ,सवर्ण और ओबीसी पर ज्यादा फोकस !

बिहार सरकार ने जैसे ही जातीय सर्वे के आंकड़ों की घोषणा की है तभी से बीजेपी के बीच खलबली मची हुई है। बीजेपी को लग रहा है कि मंडल की जातीय राजनीति को मात देने के लिए उसने कमंडल की राजनीति को आगे बढ़ाया था और उसमे पार्टी को काफी सफलता भी मिली है। पार्टी आज भी उसी फॉर्मूले के तहत आगे बढ़ रही है। लेकिन अब बिहार के आंकड़े के बाद जिस तरह से देश भर में जातिगत गणना की मांग होने लगी है उससे साफ़ हो गया है कि आने वाले समय में इस तरह के सर्वे को कोई रोक नहीं सकता। देर सवेर अब जातीय गणना को कोई रोक नहीं सकेगा। यह देश में होकर ही रहेगा। पांच राज्यों के चुनाव के बाद अगर राजनीति बदलती है तो इसकी मांग और भी तेज होगी और अगर 2024 के चुनाव में सरकार बदलती है तो फिर इसे रोकना असंभव हो जायेगा क्योंकि तमाम विपक्षी पार्टियां इसकी मांग कर रही है।

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मौजूदा समय में बीजेपी की सबसे बड़ी चुनौती सत्ता में लौटने की है। बीजेपी को लग रहा है कि अब उसके सारे दाव विफल हो रहे हैं या जनता उसके दाव को समझने लगी है। धर्म का दाव अब देश की जनता के लिए भयावह लगने लगा है। बिहार की जातीय सर्वे ने एक और बात का खुलासा किया है। यह न केवल ओबीसी की राजनीति को मजबूत किया है बल्कि यह भी बता दिया है कि ओबीसी के भीतर भी अधिकतर जातियां सत्ता और राजनीति से दूर ही रही है। कुछ ही पार्टियां सत्ता और राजनीति का लाभ अभी तक उठाती रही है। लेकिन इससे अभी अहम् जानकारी इस सर्वे से यह मिली है कि बिहार में अभी भी करीब 83 फीसदी आबादी हिन्दुओ की है। ऐसे में यह कहना कि हिंदुन की आबादी लगातार घट रही है ,गलत ही साबित हुआ है। बीजेपी और संघ की तरफ से यह कहा जाता रहा है किहिन्दू खतरे में हैं क्योंकि मुस्लिम समाज की आबादी लगातर बढ़ रही है लेकिन जो सर्वे सामने आये हैं उससे साफ़ हो गया है कि बदलते सामजिक माहौल में अब कोई भी समाज अधिक बच्चे पैदा नहीं कर रहे हैं।

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अब बीजेपी आगे क्या करेगी यह बड़ा सवाल है। बीजेपी के अध्यक्ष जेपी नड्डा पटना में पहुंचे और पार्टी के बड़े नेता कैलाश पति मिश्र की 100 वी जयंती पर आगे की राजनीति को रेखांकित। नड्डा ने कहा है कि पार्टी के लोगों को सवर्ण समाज को एक साथ लेकर चलने की चुनौती है और पिछड़े और अति पिछड़े को जोड़ने की सबसे बड़ी बात है। उन्होंने कहा कि बीजेपी हमेशा से ही ओबीसी के बीच अपनी राजनीति को बढ़ाती रही हैऔर आगे भी उसकी राजनीति ओबीसी को केंद्र में रखकर ही की जाएगी। नड्डा ने साफ़ तौर से कहा कि चुनौती तो है लेकिन बीजेपी को मझधार से निकलने का काम यही ओबीसी समाज के लोग की करेंगे। आज देश में बीजेपी के साथ जितने ओबीसी समाज के लोग जुड़े हुए हैं उसे और विस्तार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि कैलाशपति मिश्र की जयंती हर जिले में एक महीने तक मनाई जाएगी। नाडा का यह ऐलान ब्राह्मण और सवर्ण समाज को अपने पाले में रखने के रूप में देखा जा रहा है।

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कैलाशपति मिश्र की जयंती के बहाने बीजेपी सवर्ण समाज को अपने पाले में रखने की रणनीति के तहत पुराने सभी नेताओं को सम्मानित करने की योजना भी बना रही है। इसके साथ ही जो लोग निष्क्रिय हो गए हैं उन्हें फिर से सक्रिय लकरने की भी तैयारी है। यह सब इसलिए किया जा रहा है ताकि आगामी चुनाव में बीजेपी को लाभ मिल सके। बीजेपी सूत्रों के मुताबिक नड्डा ने साफ़ कह दिया है कि अभी जातीय सर्वे पर कोई सवाल उठाने का समय नहीं है। अभी सभी लोगों को एक साथ जोड़कर आगे बढ़ने का समय है। ऐसे में पार्टी के सभी लोग अधिक से अधिक लोगों से मिलने और उनकी अपने साथ रखने की रणनीति पर काम करे। नड्डा ने कहा कि पिछड़े और अति पिछड़े पर खास फोकस लड़ने की जरूरत है। उनके पास हमें जाना है और उन्हें बताना है कि बीजेपी ही उनकी सबसे बड़ी हितैषी पार्टी है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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