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Farmers Protest 2024: किसान आंदोलन- किसानों के हित की बात या राजनीति ?

Farmers movement – ​​a matter of farmers' interest or politics?

Farmers Protest 2024: 8 फरवरी की सुबह जब दिल्ली-नोएडा के लोग अपने-अपने घरों से कामकाज के लिए बाहर निकले तो उन्हें लंबी ट्रैफिक का सामना करना पड़ा। जगह-जगह क्रेन, बुलडोजर, वज्र वाहन तैनात दिखे। कई लोग जिन्हें इन सबके बारे में जानकारी नहीं थी वो बस यही पता लगा रहे थे कि आखिर माजरा क्या है? दरअसल जो भारी भीड़ है वो है उत्तर प्रदेश के किसानों की। किसान सरकार के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं।

लाज़मी सी बात है कि आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि आखिर किसान ये विरोध प्रदर्शन क्यों कर रहे हैं। इसके साथ ही और भी कई सवाल जुड़ जाते हैं कि क्या ये महज़ एक इत्तेफाक है या कुछ और। जी हां क्योंकि सवाल ये भी उठ रहे हैं कि हर बार किसानों के ये आंदोलन चुनाव से पहले ही क्यों आ जाते हैं। चलिए ये सवाल आपके लिए छोड़ते हैं और इसी के साथ वीडियो की शुरुआत करते हैं।

सबसे पहले समझिये कि यूपी के किसान आंदोलन क्यों कर रहे हैं?

8 फरवरी के दिल्ली कूच की तैयारियां किसानों की बहुत पहले से हो रही थी। जानकारी के मुताबिक किसान नेता सुखबीर खलीफा के आह्वान पर हज़ारों किसान ये आंदोलन कर रहे हैं। आपको बता दें कि पहले तो किसान नोएडा के महामाया फ्लाईओवर पर एकत्रित हुए उसके बाद चिल्ला बॉडर से दिल्ली कूच किया। इस प्रदर्शन से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। अब समझिए यूपी के किसान विरोध प्रदर्शन कर क्यों रहे हैं?

दरअसल नोएडा और ग्रेटर नोएडा में किसानों का अलग-अलग जगह पर पिछले काफी दिनों से विरोध प्रदर्शन चल रहा है। किसानों की मांग है कि 10% पल्ट, आबादी का पूर्ण निस्तारण, बढ़ा हुआ मुआवजा, स्थानीय लोगों को रोजगार मिले। किसान अपनी इन्हीं मांगो के लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं। बता दें कि ये सारे किसान नोएडा-ग्रेटर नोएडा के 149 गांवों के किसान हैं जो अपनी मांगों को लेकर पिछले कई दिनों से अलग-अलग जगहों पर विरोध प्रदर्शन और धरना दे रहे हैं।

चलिए एक बार इतिहास के पन्नों में झांकते हैं और समझते हैं कि कैसे किसानों के बार-बार आंदोलन को गैर-राजनीतिक कहने के बावजूद किसानों के आंदोलन सवालों के घेरे में आ जाते हैं। 26 नवंबर 2020 की वो तारीख थी जब किसानों ने कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन शुरू किया। सरकार के साथ कई बैठकों और वार्ताओं के बाद भी किसान अपनी बातों पर टिके रहे और बीजेपी सरकार द्वारा लाये गए तीन कृषों कानूनों के खिलाफ लड़ते रहे। आखिरकार 29 नवंबर 2021 को सरकार ने कृषि कानून वापस ले लिया।

Bill वापस लेने के बाद सरकार पर भी कई सवाल खड़े किए गए। चुंकी 2022 में यूपी विधानसभा चुनाव आने वाला था, जिस पर विपक्ष ने बीजेपी सरकार को वोट बैंक की लालच का आरोप लगाया। इसके साथ ही किसान संगठनों पर भी आरोप लगे कि चुनाव से पहले अपनी लोकप्रियता जताने के लिए और राजनीति में अपनी पैठ जमाने के लिए किसानों ने इतना बड़ा आंदोलन खोला था। ये बात पंजाब विधानसभा चुनाव में भी देखने को मिली जब किसान संगठन ने विधानसभा चुनाव में Election लड़ने का ऐलान किया।

देखा जाए तो आंदोलन के दौरान जो किसान संगठन कानूनों के खिलाफ आंदोलन को गैर-राजनीतिक कह रहे थे, उनमें से Punjab की 22 जत्थेबंदियों ने संयुक्त समाज मोर्चा बनाया और पंजाब में चुनाव लड़ा। जैसा कि आंदोलन के दौरान कहा गया था कि किसानों को राजनीति से नहीं अपनी मांगों से मतलब है। यह पंजाब के विधानसभा चुनाव में साफ हो गया। शायद आंदोलन के दौरान मिली लोकप्रियता के चलते यह संगठन खुद को राजनीति में जाने के लोभ से रोक नहीं पाये। हालांकि चुनाव में किसान हार गए। लेकिन राजनीति में आने के रास्ते इनके खुल गए।

एक बार फिर इस आंदोलन की टाइमिंग पर सवाल उठना स्वाभाविक है, क्योंकि अगले 90 से 100 दिनों के भीतर देश में आम चुनाव होने हैं। ऐसे में आंदोलन के लिए तय किया गया समय इस आंदोलन के गैर-राजनीतिक होने पर सवाल उठाता है।हालांकि इस मामले का एक पहलू यह भी कहता है कि संभव है चुनाव से पहले इस आंदोलन का मकसद सरकार पर अपनी मांगें पूरी करने के लिए दबाव बनाना हो।

हमने इस आंदोलन से जुड़े दोनों पहलू आपके सामने रखे हैं, अब क्या सही है और क्या गलत, इसका आकलन हम आपके ऊपर छोड़ते हैं।

Pooja Bharti

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