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Kuttey Trailer: स्टारकास्ट दमदार लेकिन क्या बॉलीवुड कर रहा गालियों का व्यापार?

थ्रिलर से भरपूर फिल्म 'कुत्ते' (Kuttey Trailer) का ढ़ाई मिनट का प्रोमो कल यूट्यूब पर रिलीज़ किया गया, जिसमें अबतक 2.5 व्यूज़ भी आ चुके हैं। अगर फिल्म की कहानी की बात की जाए तो इसमें पुलिस और नेताओं के जुगलबंदी से हो रहे करप्शन को बहुत दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है।

नई दिल्ली: दर्शकों को अब दिल थामकर बैठ जाने की ज़रुरत है क्योकि दमदार कास्ट के साथ आकाश भारद्वाज निर्देशित फिल्म ‘कुत्ते’ (Kuttey Trailer) का ट्रेलर रिलीज़ हो गया है। गाली के नाम से बनी इस फिल्म में नाम के अनुसार भरपूर गालियां सुनने को मिलेगीं। आकाश भरद्वाज के पिता विशाल भरद्वाज भी 2009 में एक फिल्म लेकर आए थें जिसका नाम कमीने था। इस फिल्म (Kuttey Trailer) में एक से बढ़कर एक कलाकार हैं जिन्होने फिल्म को और भी पावरफुल बना दिया है। फिल्म अगले साल यानि 2023 में 13 जनवरी को थियेटर्स में रिलीज़ होगी।

क्या है फिल्म की कहानी?

थ्रिलर से भरपूर फिल्म ‘कुत्ते’ (Kuttey Trailer) का ढ़ाई मिनट का प्रोमो कल यूट्यूब पर रिलीज़ किया गया, जिसमें अबतक 2.5 व्यूज़ भी आ चुके हैं। अगर फिल्म की कहानी की बात की जाए तो इसमें पुलिस और नेताओं के जुगलबंदी से हो रहे करप्शन को बहुत दिलचस्प तरीके से दिखाया गया है। इस फिल्म में बॉलीवुड के एक्टिंग के दुकान नसीरुद्दीन शाह, खूबसूरत अदाकाराओं में तब्बू, कोंकणा सेन, राधिका मदान और ‘कमीने’ फिल्म के कास्ट अर्जुन कपूर नज़र आने वाले हैं। फिल्म में लूटपाट, गालियां और भरपूर थ्रिलर देखने को मिलेगा। फिल्म के ट्रेलर के बाद सबकी जमकर तारीफ हो रही खासकर तब्बू के एक्टिंग को लेकर हर जगह वाह-वाही हो रही है।

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गालियों के प्रचलन से कितनी आगे जाएगीं फिल्में

फिल्मों में गालियों का इस्तेमाल आज के दौर का प्रचलन बन चुका है। कभी फिल्मों के नाम के तौर पर तो कभी फिल्मों में डॉयलाग के तरह इसका काफी इस्तेमाल किया जाता है। शोले फिल्म में दिग्गज एक्टर धर्मेंद्र के फेमस डॉयलाग ‘बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना’ हो या फिर 2009 में आई फिल्म कमीने हो, बॉलीवुड में आए दिन ऐसे बहुत से कन्टेंट देखने को मिलते हैं। ऐसे शब्द समाज में गाली के तौर पर इस्तेमाल किए जाते हैं और इसकी कड़ी निंदा भी की जाती है। पहले से कानून इसको लेकर बहुत सख़्त भी हो गया है और फिल्मो के मामले में सेंसर बोर्ड भी कड़े कदम उठाता रहता है।

सवाल ये है कि इस गालियों के प्रचलन के साथ फिल्में कबतक और कहां तक जाएगीं या साफ शब्दों में कहें तो ये बॉलीवुड का मानसिक दिवालियापन तो नहीं कि उन्हें फिल्मों के टाइटल भी अच्छे नहीं मिल रहे। और ये बात आज के मए दौर की नही है बल्कि पिछले कुछ समय से ऐसा देखा जा रहा है। या हम ये भीा कह सकते हैं कि मॉर्डन टाईम में हमारे समाज में गालियों और अपशब्दों को इस तरीके से हल्के में लिया जाने लगा है कि बिना गाली के हमारा कोई मज़ाक भी पूरा नही होता है। तो ये सवाल फिल्म जगत से लेकर हमारे समाज से भी है कि आने वाले दौर में हम अपनी पीढ़ी को कैसा सिनेमा देना चाहते हैं।

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Ashok Kumar

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