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सनातन धर्म: अति तीव्र हो रहा सनातन का झंझट!

Sanatan Dharma: सनातन को लेकर माहौल गर्म है। राजनीति भी चल रही है और बाजार भी चल रहा है। सनातन बचे तो देश बचे! जब सनातन ही नहीं है तो फिर देश और समाज की क्या जरूरत! इसलिए पहले सनातन को बचाने की जरूरत है। सनातन (Sanatan Dharma) बचेगा तो देश भी बच जायेगा और समाज भी। कुछ इसी तरह के शब्द इन दिनों कई इलाकों से निकलते हैं। कई साधू संत बोलते हैं और कई जगह नारे भी खूब लग रहे हैं। देश से बड़ा धर्म! पहले धर्म तब देश! कोई इस पर शोध करने बैठे तो पागल हो सकता है।

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धर्म इंसान को शालीन बनाता है, संस्कार देता है और विनम्र भी बना डरता है। जिसमें विनम्रता नहीं, संस्कार नहीं और मानवता की समझ नहीं वही किसी भी धर्म को क्या मान सकता है। कहने को वह भले ही धार्मिक लगे लेकिन वह पाखंड ही हो सकता है। धार्मिक व्यक्ति कभी किसी से ईर्ष्या नहीं करता! कभी आपने देखा है कि साधू, संत, ऋषि, महात्मा को गुस्सा करते हुए! इतिहास को पलटिये तो कुछ ही साधू संतों और महा मुनियों को गुस्से में दिखाया गया है। इसमें क्या सच्चाई है कौन जाने! यह सब तो लाखों बरस पहले की बात है। किसने देखा, किसने समझा और किसने लिखा? यह सब आजतक किसी को पता नहीं।

धर्म और विधर्म के बीच में सदा ही युद्ध चलते रहे हैं। कह सकते हैं यह युद्ध सदा ही सत्य और असत्य के बीच ही रहा है। यह भी कह सकते हैं देवता और दानव के बीच युद्ध चलते रहे। ये दानव कौन थे? वही सब जो धर्म से नहीं जुड़े थे। सत्य से परिचित नहीं थे। संस्कार से परिपूर्ण नहीं थे। यह युद्ध उसी का द्योतक रहा है। अब आधुनिक समाज में भी धर्म का एक नया चलन है। लोग धर्म बदल भी रहे हैं और धर्म को अपना भी रहे हैं। धर्म से सीख भी रहे हैं और धर्म को परख भी रहे हैं। इसी धारा पर बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्होंने हर धर्म को अपनाया है। जिया है और जी भी रहे हैं।

कह सकते हैं ये सभी धर्म पर शोध कर रहे हैं। लेकिन आज तक इन शोधकर्ताओं ने किसी भी धर्म पर कोई उंगुली नहीं उठाई है। सबके अपने तरीके हो सकते हैं। सबकी अपनी मान्यताएं हो सकती है और सबकी अपनी पूजा पद्धति हो सकती है। कोई धर्म किसी और धर्म से बड़ा और छोटा नहीं होता। बड़ा और छोटा जब किसी इंसान को ईश्वर नहीं करते तो धर्म भला क्या करेगा?

लेकिन धर्म पर विवाद पहले से ही जारी है। आज की मौजूदा राजनीति में अब धर्म को बेचा जा रहा है। तौला जा रहा है। बदनाम भी किया जा रहा है। जिस तरह से सनातन को लेकर हिन्दुओं के बीच ही कई तरह की विचारधाराएं पनप रही है उससे तो यही लगता है कि आने वाले समय में समाज के भीतर इसको लेकर बड़ा विद्रोह भी हो सकता है। तनाव भी हो सकते हैं और आपसी मार काट भी मच सकती है।

Udhayanidhi Stalin

तमिलनाडु से उठा यह विवाद कर्नाटक और फिर आंध्रप्रदेश तक तो पहुंचा ही। अब यह उत्तर भारत में पनप रहा है। दक्षिण भारत में सनातन पर टिप्पणी की जा रही है और उत्तर भारत में इस पर रिएक्शन हो रहा है। भारत धर्म प्रधान देश है और जिस तरह से सनातन (Sanatan Dharma) पर टिप्पणी हो रही है उसके आने वाले समय में कई और तरह के खेल सामने आ सकते हैं। पहले उदयानिधि स्टालिन (udhayanidhi stalin) ने इसकी शुरुआत की। डीएमके की राजनीति सनातन के खिलाफ ही तो शुरू हुई थी। फिर अन्नाद्रमुक की राजनीति भी वही है। स्टालिन के बाद ए राजा ने टिप्पणी की। कर्नाटक में मयंक खड़गे ने भी टिप्पणी की और बाद में अभिनेता प्रकाश राज ने बहुत कुछ खोलकर सामने रख दिया।

याद रहें इनमें से कोई भी आदमी कम पढ़ा लिखा नहीं है। सब सामाजिक है और ग्यानी भी। कोई किसी को ज्यादा समझा भी नहीं सकता। इनकी बातें सामाजिक और वैज्ञानिक हो सकती है। उधर सनातन (Sanatan Dharma) को बचाने वाले लोगों को लग रहा है कि हिन्दू धर्म पर प्रहार किया जा रहा है। लेकिन ऐसी बात नहीं है। धर्म को भला कौन चुनौती दे सकता है। यह तो जीने का आधार है। चुनौती तो पाखंड को दी जाती है और ऐसे समय में अगर किसी में भी पाखंड की बू है तो उसे सुधार करने की जरूरत है।

अब राजस्थान से सनातन के बचाव में आवाज उठ रहे हैं। बीजेपी नेता और केंद्र सरकार में मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत (gajendra singh shekhawat) ने कहा है कि जो भी सनातन के खिलाफ बोल रहा है उसकी जुबान खींच कर बाहर कर दी जाएगी। जो सनातन की तरफ आंख उठाएगा उसकी आंखे निकाल ली जाएगी। शेखावत ने कहा कि राजनीति करने वाले कोई भी नेता आज सनातन के बिना नहीं रह सकते। उसकी कोई हैसियत हो भी नहीं सकती। उन्होंने कहा कि इस देश में कितने आक्रांता आये और वैभव को लूटकर चले गए, धर्म को ख़त्म करने आये थे कुछ कर नहीं पाए। सनातन (Sanatan Dharma) को कोई ख़त्म कर ही नहीं सकता।

अब मंत्री जी के इस बयान का विश्लेषण करें तो खेल और भी उग्र हो सकता है। क्या शेखावत जी को ऐसी बातें बोलने की जरूरत है? क्या वही सबसे बड़े सनातनी है? और ऐसा है तो वे भी धर्म गुरु बनकर देश को प्यार से एक मंच पर लाने की कोशिश क्यों नहीं करते? इसलिए कहा जा रहा है कि सनातन (Sanatan Dharma) के नाम पर खेल हो रहा है। नेता लोग अपनी रोटी सेंक रहे हैं और बदनाम सनातन हो रहा है। लोगों को यह समझने की जरूरत है। यहां कोई हिन्दू-मुसलमान नहीं लड़ रहा। यह लड़ाई हिन्दू की हिन्दू से ही है।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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