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राज्यपाल द्वारा विधेयकों को लंबित रखने पर सुप्रीम कोर्ट ने की अहम टिप्पणी

Supreme Court: भारत में बहुत लम्बे समय से देखा जाता है कि राज्यपाल कई मामले में कुछ ऐसा करते दिखते हैं जो लोकतंत्र और संघीय ढांचा के लिहाज से सवाल उठाते हैं। अभी हाल में ही पंजाब और तमिलनाडु से जुड़े दो ऐसे मामले सुप्रीम कोर्ट में पहुंचे जिसे देखकर सुप्रीम कोर्ट भी दंग रह गया।

अब सुप्रीम कोर्ट ने विधेयकों को लेकर राज्यपाल की भूमिका पर कड़ी टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि कोई भी राज्यपाल अनिश्चितकाल तक किसी भी विधेयक को लटका कर नहीं रख सकते। वैसे भी किसी भी विधेयक को लम्बे समय तक लंबित नहीं रखा जा सकता है। शीर्ष अदालत ने साफ किया है कि बेशक राज्यपाल के पास संवैधानिक ताकत होती है लेकिन वह इस ताकत का इस्तेमाल राज्य सरकार के कानून बनाने के अधिकार को कुंड बनाने के लिए नहीं कर सकते। आज मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ,जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि अगर कोई भी राज्यपाल किसी भी राज्य के विधेयक को लम्बे समय तक लंबित रखते हैं तो इससे संसदीय व्यवस्था में संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के उलट के रूप में देखा जाना चाहिए। अदालत ने साफ़ किया कि कोई भी राज्य सरकार जनता की हितों के लिए कोई कानून बनाने की बात करती है और ऐसे में राज्यपाल को तुरंत इस पर अपना निर्णय लेना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो इसे लोकतंत्र के संसदीय व्यवस्था में ठीक नहीं माना जायेगा।

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बता दें कि पिछले दिनों पंजाब सरकार ने पिछले दिनों राज्यपाल पर विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था। और इस बात की शिकायत की थी कि राज्यपाल लम्बे समय से विधेयक को अपने पास रखे हुए हैं और उस पर कुछ भी निर्णय नहीं ले रहे हैं। उधर पंजाब के राजयपाल बनवारी पुरोहित का कहना था कि जून महीने में जो पंजाब का सत्र था वह सत्र ही गैर संवैधानिक था इसलिए उस सत्र में किया गया काम भी असंवैधानिक ही है। उधर पंजाब सरकार का तर्क है कि अभी तक बजट सत्र का सत्रावसान नहीं हुआ है इसलिए सरकार जब भी चाहे फिर से सत्र को बुला सकती है। इधर पंजाब सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने बीते दस नवम्बर को अपने फैसले में कहा कि बेशक राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी भी विधेयक को रोक सकते हैं लेकिन इसका सही तरीका तो यही है कि वह विधेयक को पुनर्विचार के लिए फिर से विधानसभा को भेजे।

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पंजाब सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे इस खींचतान के बाद शीर्ष अदालत ने कहा है कि संघवाद और लोकतंत्र बुनियादी ढांचे का हिस्सा है और दोनों को लग नहीं किया जा सकता। अगर एक तत्व कमजोर होगा तो दूसरा भी खतरें में पड़ जायेगा। मौलिक आजादी और नागरिको की आकांक्षा को बनाये रखने के लिए इन दोनों का समन्वय एक साथ होना चाहिए। इसके बाद शीर्ष अदालत ने राज्यपाल बनवारी लाला पुरोहित को निर्देश दिया कि वह विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों पर जल्द फैसला ले। इसके साथ ही कोर्ट ने पंजाब सरकार ने जून में आयोजित सत्र को भी संवैधानिक करार दिया है। अब देखना ये है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद राज्यपाल क्या कुछ करते हैं।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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