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क्या इस बार 22 जनवरी को दिवाली मनाई जाएगी !

Ram Mandir Ayodhya: कबीर दास कहते हैं कि मन चंगा तो कठोती में गंगा। यानी जब मन खुश हो तो घर में रखे पानी को भी गंगा मान लो। आडम्बर और धार्मिक बातो पर कबीर ने बड़ी -बड़ी बाते कही है। उन्होंने भी हमला किया है और मस्जिदों को भी नंगा किया है। कबीर ने पाखंड पर हमला करते हुए हिन्दुओं को भी आंख दिखाया है और मुसलमानो को भी। याद कीजिये कबीर जिस काल में यह सब कह रहे थे उस समय मुगलों का शासन था लेकिन कबीर को मुग़ल शासक भी बांधने से हिचक रहे थे। लेकिन कबीर तो फक्क्ड़ थे। उन्हें आखिर डर कैसा और किससे ?

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आज देश में धर्म के नाम पर जो हो कुछ रहा है ,कबीर होते तो रोते या फिर इस समाज से ही भाग जाते। लेकिन सच यही है कि अभी कबीर नहीं है। धर्म के नाम पर पाखंड आज पहले से ज्यादा चलन में है। इस पाखंड में कोई धार्मिक सोंच और समझ नहीं है। यह एक खेल है और खेल यही है कि धर्म की चासनी में राजनीति को रंगा जाए। रानगिर राजनीति में सब कुछ जायज है।
अयोध्या में राम मंदिर तैयार हो रहा है। उसकी प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होने जा रही है। यह सच है कि अयोध्या का फिर से नव निर्माण हो रहा है। प्रभु राम को घर मिलने जा रहा है। अब तक प्रभु श्रीराम झोपड़ी में रह रहे थे। टेंट का उनका घर था और अब उन्हें आलीशान घर मिलेगा। देश गदगद है। भक्त गदगद हैं और सेवक भी गदगद हैं। त्रेता युग में जब प्रभु राम इस धरती पर आये थे तब बेईमानी न के बराबर थी ,झूठ का बोलबाला बहुत ही कम था। साधु संत और महात्मा ज्ञान के पुजारी थे।

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पथप्रदर्शक थे। समाज को इन महात्माओं से जीवन का आधार मिलता था। लेकिन अब ऐसा नहीं है। त्रेता युग में प्रभु राम जो कहते थे वही करते थे। वे कहते कम थे और करते ज्यादा थे .वे सबको करते थे लेकिन कहते किसी को नहीं थे। आखिर वे भगवान थे .ईश्वर रूपी राम को कभी कोई गुमान न था। उनके रोम रोम में तो मानवता थी। वे मानवता के पुजारी थे। उनकी नजर में न कोई बड़ा था न कोई छोटा। न कोई बलवान था न कोई कमजोर। जो कमजोर था उसके साथ वे खुद खड़े थे। सबको बराबर न्याय। सबको एक सामान लाभ। न पुरुष से भेद और न ही नारी से कोई भेद। न मानव से लोभ और न ही दानव से कोई तिरस्कार। सब उनके ही जो थे। आखिर लड़ते किस्से ? लड़ाई तो उससे होती थी जो दम्भी था। जो समाज को दुःख पहुँचाता था। जो कमजोर को दबाता था और जो महिलों पर अत्याचर करता था।

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ईश्वर ने हम सब की रचना की है। हम सब उन्ही के ही तो हैं। भारत के कण -कण में ईश्वर का वास है। कोई सनातनी हो या फिर कोई और ही धर्म के उपासक। सबकी उपासना तो उसी ईश्वर के लिए है। आखिर कलयुग में ईश्वर को देखा किसने है ? न कोई प्रभु राम को देखा है और न कोई पैगम्बर को। न कोई बुध को देखा है और न कोई महावीर को। लेकिन ये सब ईश्वर रूपी हमारे सामने आये। हम सब उन्हें ही तो पूजते हैं। सबकी अपनी आस्था है। सबके अपने रूप हैं। जब सब मानव एक सामान रूप में नहीं है तो सब धरम के उपासक एक सामान कैसे होंगे। सनातन परंपरा में ही कई उपासना के केंद्र हैं। कोई शिव को मानता है तो वह शैव कहलाता है। कोई शक्ति को पूजता है तो शाक्त कहलाता है। शैव वाले अपने महान कहलाते हैं तो शाक्त वाले खुद को महान कहते हैं। कोई विष्णु को पूजता है वह वैषणव कहलाता है। फिर ईश्वर के कई रूप भी हैं। सबके उपासक अलग -लग हैं। भगवान राम शिव के पासक है न तो शिव खुद विष्णु की उपासना करते हैं। बड़ा विचित्र संसार है।

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अयोध्या में धर्म की गंगा बाह रही है। 22 जनवरी को प्रभुराम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारी चल रही है। सरकार उसके लोग देश को सन्देश देते फिर आ रहे हैं कि अयोध्या आओ प्रभु राम का दर्शन करो। सरकार ने मंदिर का निर्माण कराया है ? क्या सरकार ने मंदिर का निर्माण कराया है ? क्या फ्देश के लोगों के साथ झूठ बोलै जा रहा है ? प्रभु राम तो सबके हैं। वे भक्तों के भी हैं और दुष्टों के भी हैं। अब सरकार कह रही है कि 22 जनवरी को देश में दिवाली मनाई जाएगी। प्रभु राम की चरणों में तो देश हर दिन दिवाली ही तो मनाता है। उनके सामने जो दिए रखे जाते हैं वह क्या है ? लेकिन राजनीति ने इसे एक इवेंट बना दिया है। सामने लोकसभा चुनाव जो है। चुनाव ख़त्म होगी सारे आडम्बर भी खतम हो जायेंगे। लेकिन एक सच है। प्रभु राम हमारे रहे हैं और सदा रहेंगे। हमारी आस्था कभी विचलित नहीं होगी। आज जो आडम्बर कर रहे हैं शायद उनकी आस्था खराब हो जाए लेकिन देश की आस्था कभी दोल नहीं सकती

Akhilesh Akhil

Political Editor

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