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क्या ममता और नीतीश दबाव की राजनीति कर रहे हैं ?

INDIA Alliance Political News: इंडिया गठबंधन के भीतर जो कुछ भी हो रहा है उससे साफ़ लगता है कि नीतीश कुमार और ममता बनर्जी दबाव की राजनीति कर रहे हैं। लेकिन बड़ा सवाल तो यह है कि अगर उनकी दबाव की राजनीति को कांग्रेस मान भी ले तो क्या वह इंडिया गठबंधन के साथ रह पाएंगे ? यही सबसे बड़ा सवाल है। पहले ममता के बारे में बात की जाए।
ममता की राजनीति यही है कि वह किसी भी सूरत में बंगाल में किसी भी सहयोगी पार्टी को एक सीट भी नहीं देना नहीं चाहती। यह अच्छी बात हो सकती है। ममता को लग रहा है कि वह अकेले ही बंगाल में बीजेपी को हरा देगी। अगर ऐसा है तो पिछले चुनाव में उसने उसने बीजेपी को जीरो पर क्यों नहीं रोक पायी। इसका जबाव ममता के पास नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में पहली बार बीजेपी को 18 सीटों पर जीत हाशिल हुई थी। आज बंगाल में बीजेपी के पास 18 सांसद है। इंडिया गठबंधन को लग रहा था कि अगर बंगाल में सब मिलाकर चुनाव लड़ेंगे तो बीजेपी को घेरा जा सकता है। लेकिन ममता यह नहीं चाहती। जाहिर ममता को कोई यह कह रहा है कि अपने ऐसा किया तो आपके विधायकों ,सांसदों और भतीजे पर कार्रवाई करेगी जांच एजेंसी। तो क्या यही सब कारण है जो ममता को इंडिया गठबंधन से अलग होने के लिए बाध्य कर रहा है।


ममता कह रही है कि वह कांग्रेस को दो सीट ही दे सकती ही। वाम दलों के लिए तो वह एक सीट भी नहीं छोड़ेगी। हालांकि कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने ममता के इस खेल को नकार दिया है। अधीर ने कहा था कि कांग्रेस को ममता की दया की जरूरत नहीं है। अधीर ने पार्टी को कहा है कि कांग्रेस पांच से छह सीट पर तो अपने दम पर चुनाव जीत सकती है। इस बार कांग्रेस की स्थिति पहले से काफी मजबूत है। लेकिन ममता को यह सब मंजूर नहीं। लेकिन कांग्रेस किसी भी सूरत में घुटने नहीं टेक रही है।
लेकिन कहानी यही नहीं है। बीते दिनों सीपीएम ने कहा था कि अगर भारत जोड़ो यात्रा में ममता की पार्टी हिंसा लेती है तो वह शामिल नहीं होगी। इसके बाद ही ममता ने अपना स्टैंड बदला और कहा कि कांग्रेस की यात्रा की जानकारी उसे नहीं है। लेकिन सच यही है कि खड़गे और राहुल गाँधी ने व्यक्तिगत रूप से यात्रा की जानकारी ममता को दी है। लेकिन ममता इसे नकार रही है। जाहिर ममता दबाव की राजनीति की राजनीति कर रही है। जानकारी मिल रही है कि इस बार के चुनाव में वाम मोर्चा अकेले चुनाव लड़ेगी। ऐसी हालत में बंगाल में कांग्रेस को पांच मिल भी सकती है। और इसकी सम्भवं भी बनी हुई है।


उधर नीतीश कुमार क्या चाहते हैं यह किसी पता नहीं है। वह किसके साथ जायेंगे और किसके साथ रहेंगे इसकी जानकारी केवल वही जानते हैं। अगर मन भी लिया जाए कि अगर नीतीश कुमार बीजेपी के साथ फिर से जाते हैं तो हो सकता है कि बिहार में इंडिया गठबंधन को बड़ा झटका लग सकता है लेकिन नीतीश कुमार की राजनीति संदेह के घेरे में आ जाएगी। उसकी पार्टी की हालत भी क्या होगी यह कौन जानता है ? राजनीति में विश्वसनीयता सबसे बड़ी चीज है। अगर यह सब खतम हो जाता है तो नकार ही देती है। ऐसे में अपनी पार्टी के बारे में भले ही कोई भी निर्णय नीतीश ले सकते हैं लेकिन फिर देश की राजनीति में वे सबसे अविश्वसनीय नेता के रूप में जाने जायेंगे।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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