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सुप्रीम कोर्ट में आज फिर होगी इलेक्ट्रोल बॉन्ड पर सुनवाई , जानिए इस बॉन्ड का सच !

Electoral Bonds: चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए 2 जनवरी 2018 को चुनावी बॉन्ड योजना सरकार द्वारा अधिसूचित को गई थी और यह कहा गया कि इस तरह चंदे के आगमन से कोई गड़बड़ी नहीं होगा और सब कुछ पारदर्शी हो जायेगा। काले धन का उपयोग नही होगा और हर चंदे पर सबको निगाह भी होगी ।चुनावी बॉन्ड को नकद चंदे के विकल्प के रूप में भी देखा गया।
लेकिन जैसा की हर योजना के पीछे कोई न कोई मंशा छुपी होती है। चुनावी बॉन्ड भी उसी मंशा की शिकार हो गई। बता दें कि चुनावी बॉन्ड का चंदा अज्ञात स्रोत का माना जाता है यानी चंदा देने वालों की सार्वजनिक डिटेल उपलब्ध नहीं होती। यही से खेल शुरू हुआ और फिर यह योजना भी कमाई का बड़ा स्रोत बनने लगा ।सवाल उठने लगे। जनता को भी आश्चर्य होने लगा कि किसी पार्टी को ज्यादा पैसे और किसी को कम पैसे कैसे आ रहे है। और आ भी रहे हैं तो बड़ी मात्रा में।

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अब इस खेल को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कि याचिकाएं डाली गई है। कुछ याचिका राजनीतिक दलों द्वारा भी डाली गई है। सुप्रीम कोर्ट में इस पर सुनवाई चल रही है। याचिका में इस चुनावी बॉन्ड को बाध्यता को हो चुनौती दी गई है ।पांच सदस्यों वाली बेंच इस मामले को देख रही है। सीपीएम की तरफ से दायर याचिका में कहा गया है कि आखिर क्या वजह है कि इस चुनावी बॉन्ड का बड़ा हिस्सा बीजेपी को ही जा रहा है ?
अभी तक इस बॉन्ड के जरिए राजनीतिक दलों को 12 हजार करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। इसका दो तिहाई हिस्सा बीजेपी को ही मिला है। इसी को लेकर सवाल उठ रहे है। अब लोग इसकी जानकारी भी मांग रहे है। कई याचिका में बॉन्ड खरीदने वालों के नमो को सार्वजनिक किए जाने को मांग उठ रही हैं। कई और सवाल किए जा रहे है। बीजेपी परेशान है। अगर अदालत ने कोई बड़ा निर्णय ले लिया तो बड़ा खेल भी हो सकता है। बता दे कि कल की सुनवाई में भारत सरकार के सबसे बड़े वकील अटॉर्नी जनरल ने अदालत को साफ कर दिया कि बॉन्ड खरीदने वाले के नाम सार्वजनिक नही किए जा सकते और जनता को यह जानने का कोई अधिकार भी नही है क्योंकि यह यह एक नीतिगत मामला है ।लेलों अदालत ने अभी इस पर कोई टिप्पणी नही किया है।

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2017 में एडीआर ने एक जनहित याचिका के जरिए कहा था कि इस बॉन्ड के जरिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है और यह पारदर्शी भी नही है। इसलिए चुनावी बॉन्ड को बिक्री को रोका जाए। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस पर रोक लगाने से इंकार कर दिया और सरकार से जवाब मांगा था। अब सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल का को जवाब आया है एक सबके सामने है।उन्होंने साफ किया है इस बॉन्ड के बारे में कीड़ी को कुछ भी पूछने का हक नहीं है। उन्होंने इस बॉन्ड के कानून का उल्लेख किया है।
योजना के मुताबिक भारत का कोई भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई चुनावी बॉन्ड को खरीद सकती है। इसके साथ कोई भी व्यक्ति एकल या साझा रूप से भी इस बॉन्ड को खरीद सकता है। इसके बाद बॉन्ड के जरिए पार्टी को चंदा दिया जा सकता है । बता दे कि चुनावी बॉन्ड जारी करने के लिए केवल एसबीआई की अधिकृत है।

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यह भी बता दें कि इस नंद के जरिए वाही पार्टी चंदा ले सकती है जो पंजीकृत है और चुनाव लड़ती है ।इसके साथ ही कम से कम एक फीसदी वोट भी उसे मिलते हों। कीड़ी भी राज्य में या केंद्र में ।20 हजार से कम चंदा देने वालों का देतसिल देना जरूरी नहीं होता है। एडीआर के मुताबिक 2016 से 2017 और 2021 से 2022 के बीच छह साल की अवधि में 31 मान्यता प्राप्त पार्टियों को बॉन्ड के जरिए चंदे मिलने का को विश्लेषण किया गया है उसमे सात राष्ट्रीय पार्टियां है और 24 क्षेत्रीय दल है।इसमें सबसे ज्यादा चंदा बीजेपी को मिले है। कुछ चंदे के दो तिहाई के बराबर। बीजेपी को कुल चंदे का 52 फीसदी से ज्यादा प्राप्त हुए हैं। ये रकम करीब 9751 करोड़ की होते हैं। दूसरे नंबर पर पर कांग्रेस को 2955 करोड़ रुपए का चंदा इस बॉन्ड के जरिए मिले हैं। फिर की डालें को कुछ करोड़ और लाख में चंदे मिले हैं। 2021 से 22 के बीच बीजेपी को 1033 करोड़ के चंदे इस योजना के तहत मिले हैं। टीएमसी को भी 528 करोड़ के चंदे मिले जबकि कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। सीपीएम को इस अवधि में कोई चंदा नही मिला।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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