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संघर्ष से भरा था महिला आदिवासी Draupadi Murmu का जीवन, बेटे की मौत के बाद टूट गई थी राष्ट्रपति, जानें उनसे जुड़े कई अनसुने किस्से

नई दिल्ली: द्रौपदी मुर्मू ने देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद राष्ट्रपति के रूप में शपथ ले ली है. 25 जुलाई द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली. भारत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलायी. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने संदेश में कहा कि एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति जैसे पद पर पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण है.

द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद अपने संबोधन में अपनी बात रखते हुए कहा, ‘‘मैं भारत के समस्त नागरिकों की आशा-आकांक्षा और अधिकारों के प्रतीक इस पवित्र संसद भवन से सभी देशवासियों का पूरी विनम्रता से अभिनंदन करती हूँ. आपकी आत्मीयता, आपका विश्वास और आपका सहयोग, मेरे लिए इस नए दायित्व को निभाने में मेरी बहुत बड़ी ताकत होंगे.’’

दरअसल, हम अपने जीवन में हमेशा कुछ अच्छा करने को सोचते हैं, कई बार दीमाग में ये भी आता है कि ऐसा क्या करें जिससे हमारा नाम हर किसी के ज़ुबान पर बैठ जाए. लेकिन हम ये सब बस सोचते रह जाते है लेकिन वो सपना साकार करने के लिए कुछ करते नहीं जिसकी वजह से हमारा वो सपना, सपना ही रह जाता है.

जीवन के कई क्षेत्र में सफलता हासिल करने वाली महिलाएं इस दौरान देश के शीर्ष संवैधानिक पद तक पहुंचने में कामयाब रहीं और 2007 में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल करने के बाद अब द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना देश की लोकतांत्रिक परंपरा की एक सुंदर मिसाल है.

द्रौपदी मुर्मू के पारिवारिक जीवन के बारें में बात करें तो द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है. मुर्मूने मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ाई की हैं. यह गांव दिल्ली से लगभग 2000 किमी और ओडिशा के भुवनेश्वर से 313 किमी दूर है. उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गांव के प्रधान रहे.

उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया था. अपने पति और दो बेटों के निधन के बाद द्रौपदी मुर्मू ने अपने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं. उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं.

जब इन्हें थोड़ी समझ प्राप्त हुई, तभी इनके माता-पिता के द्वारा इनका एडमिशन इनके इलाके के ही एक विद्यालय में करवा दिया गया, जहां पर इन्होंने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई को पूरा किया. इसके पश्चात ग्रेजुएशन की पढ़ाई करने के लिए यह भुवनेश्वर शहर चली गई. भुवनेश्वर शहर में जाने के पश्चात इन्होंने रामा देवी महिला कॉलेज में एडमिशन प्राप्त किया और रामा देवी महिला कॉलेज से ही इन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई कंप्लीट की.

ग्रेजुएशन की एजुकेशन पूरी करने के पश्चात ओडिशा गवर्नमेंट में बिजली डिपार्टमेंट में जूनियर असिस्टेंट के तौर पर इन्हें नौकरी प्राप्त हुई. इन्होंने यह नौकरी साल 1979 से लेकर के साल 1983 तक पूरी की. इसके बाद इन्होंने साल 1994 में रायरंगपुर में मौजूद अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन सेंटर में टीचर के तौर पर काम करना चालू किया और यह काम इन्होने 1997 तक किया.

ये भी पढ़ें- आदिवासी समाज, गरीबी में जन्म के बावजूद मेरा राष्ट्रपति बनाया जाना भारतीय लोकतंत्र की शक्ति से ही संभव हुआः द्रौपदी मुर्मू

द्रौपदी मुर्मू ने एक अध्यापिका के रूप में अपना पेशेवर जीवन शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में कदम रखा.साल 1997 में उन्होंने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की. उनके राष्ट्रपति बनने पर दुनियाभर के नेताओं ने इसे भारतीय लोकतंत्र की जीत करार दिया है. द्रौपदी मुरमू को नीलकंठ पुरस्कार सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए साल 2007 में प्राप्त हुआ था. यह पुरस्कार इन्हें ओडिशा विधानसभा के द्वारा किया गया था.

श्याम चरण मुर्मू के साथ द्रौपदी मुर्मू की शादी हुई थी, जिनसे इन्हे संतान के तौर पर टोटल 3 बच्चे प्राप्त हुए थे, जिनमें दो बेटे थे और एक बेटी थी। हालांकि इनका व्यक्तिगत जीवन ज्यादा सुखमय नहीं था, क्योंकि इनके पति और इनके दोनों बेटे अब इस दुनिया में नहीं है. इनकी बेटी ही अब जिंदा है जिसका नाम इतिश्री है, जिसकी शादी द्रौपदी मुर्मू ने गणेश हेम्ब्रम के साथ की है. द्रौपदी का बचपन बेहद अभावों और गरीबी में बीता था. लेकिन अपनी स्थिति को उन्होंने अपनी मेहनत के आड़े नहीं आने दिया. उन्होंने भुवनेश्वर के रमादेवी विमेंस कॉलेज से स्नातक तक की पढ़ाई पूरी की. बेटी को पढ़ाने के लिए द्रौपदी मुर्मू शिक्षक बन गईं. उन्होंने 1979 से 1983 तक सिंचाई और बिजली विभाग में जूनियर असिस्टेंट के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद 1994 से 1997 तक उन्होंने ऑनरेरी असिस्टेंट टीचर के रूप में कार्य किया था.

मुर्मू जी ने हाल ही में एक पत्रिका को बताया कि उनका नाम हमेशा से ‘द्रौपदी’ नहीं था उनके स्कूल शिक्षक द्वारा बदल दिया गया था. मुर्मू ने खुलासा किया कि उनका पहला नाम ‘द्रौपदी’ – महाकाव्य ‘महाभारत’ के एक चरित्र पर आधारित है – उनका मूल नाम नहीं है. ‘द्रौपदी’ नाम दरअसल उनके स्कूल टीचर ने दिया था.

आदिवासी हितों की पुरोधा कही जाने वाली कद्दावर महिला शख्सियतों में शुमार द्रौपदी मूर्मू को झारखंड में सबसे लंबी अवधि तक राज्यपाल रहने का गौरव हासिल है. झारखंड में द्रौपदी मुर्मू का छह साल से अधिक का कार्यकाल विवादों से परे रहा. द्रौपदी मुर्मू झारखंड की एकमात्र राज्यपाल रहीं, जिन्होंने पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया. हालांकि वे पांच वर्ष का कार्यकाल खत्म होने के बाद भी राज्‍यपाल पद पर बनी रहीं. उनका कार्यकाल 17 मई 2021 को समाप्त हो गया.

द्रौपदी मुर्मु का राजनीतिक जीवन

1. उड़ीसा गवर्नमेंट में राज्य मंत्री स्वतंत्र प्रभार के तौर पर द्रौपदी मुर्मू को साल 2000 से लेकर के साल 2004 तक ट्रांसपोर्ट और वाणिज्य डिपार्टमेंट संभालने का मौका मिला.

2. इन्होंने साल 2002 से लेकर के साल 2004 तक उड़ीसा गवर्नमेंट के राज्य मंत्री के तौर पर पशुपालन और मत्स्य पालन डिपार्टमेंट को भी संभाला.

3. साल 2002 से लेकर के साल 2009 तक यह भारतीय जनता पार्टी के अनुसूचित जाति मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मेंबर भी रही.

4.भारतीय जनता पार्टी के एसटी मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष के पद को इन्होंने साल 2006 से लेकर के साल 2009 तक संभाला.

5. एसटी मोर्चा के साथ ही साथ भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के मेंबर के पद पर यह साल 2013 से लेकर के साल 2015 तक रही

6. झारखंड के राज्यपाल के पद को उन्होंने साल 2015 में प्राप्त किया और यह इस पद पर साल 2021 तक विराजमान रही.

1997 में चुनी गई थी जिला पार्षद

साल 1997 का वह समय था, जब ओडिशा के रायरंगपुर जिले से पहली बार इन्हें जिला पार्षद चुना गया, साथ ही यह रायरंगपुर की उपाध्यक्ष भी बनी. इसके अलावा इन्हें साल 2002 से लेकर के साल 2009 तक मयूरभंज जिला भाजपा का अध्यक्ष बनने का मौका भी मिला. साल 2004 में यह रायरंगपुर विधानसभा से विधायक बनने में भी कामयाब हुई और आगे बढ़ते बढ़ते साल 2015 में इन्हें झारखंड जैसे आदिवासी बहुल राज्य के राज्यपाल के पद को संभालने का भी मौका मिला.

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