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फिर बेनतीजा रही किसानों और सरकार की बातचीत, आखिर क्यों अपनी हठ पर अड़े हैं प्रदर्शनकारी ?

Delhi Kisan Protest | Farmer movement | farmer protest update

Delhi Kisan Protest: देश की राजधानी में कुछ प्रदर्शनकारी बैठे हुए हैं, जमकर उत्पात मचा रहे हैं और अपनी हठ पर अड़े हुए हैं। दिल्ली में पिछले कुछ दिनों से जमकर प्रदर्शन, हंगामा किया गया। किसानों ने दिल्ली कूच की जिद की थी और एक वक्त पर ऐसा लग रहा था ये सब जल्द ही थम जाएगा। कयास लगाए जा रहे थे कि 48 घंटों की शांति के बाद किसान फाइनली मान जाएंगे और किसान आंदोलन से हट जाएंगे। लेकिन सारे दावे फीके साबित हो गए,  सब धरा की धरा रह गया। किसान कह रहे हैं 21 तारीख से फिर दिल्ली के लिए कूच होगा।

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दरअसल आपको बता दें कि केंद्र सरकार ने रविवार को हुई बैठक ने साफ कह दिया था कि कि वो पांच फसलों पर एमएसपी यानि न्यूनतम समर्थन मूल्य देने के लिए तैयार है। ये पांच फसलें हैं, तुअर यानि अरहर दाल, उड़द दाल, मसूर दाल मक्का और पांचवी फसल है कपास । इन पांच फसलों को सरकार की दो प्रमुख एजेंसियां उनकी खरीद की ये पांच फसलें हैं। ये दोनों एजेंसियां हैं, NCCF यानि  भारतीय राष्ट्रीय उपभोक्ता महासंघ और दूसरी NAFED यानि भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ। ये दोनों एजेंसियां सरकार की बताई पांच फसलों पर किसानों के साथ 5 साल का कॉन्ट्रैक्ट करेंगी और उन्हें MSP पर खदीदेंगी। लेकिन सरकार ने इसके लिए शर्त भी रखी है..कहा है इसके लिए किसानों को अपनी फसल को डाइवर्सिफाई करना होगा। यानि जिन जगहों पर अभी तक वो गेहूं और चावल जैसी फसलें बो रहे हैं। उन जगहों पर अगर वो सरकार की बताई गई पांच फसलों में से कोई फसल बोते हैं तभी उन्हें एमएसपी का लाभ मिलेगा और इस दौरान खरीद की कोई लिमिट नहीं होगी। किसान जितना चाहे उतना उत्पाद सरकार के बताई एजेंसियों को बेच सकते हैं

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अब सवाल ये उठता है कि आखिर ये डाइवर्सिफाई यानि नई फसल बोने वाला क्या मामला है और इस शर्त से सरकार को क्या फायदा होगा…किसानों को क्या फायदा और देश का क्या फायदा होगा तो इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क है।किसानों को मनाने के लिए सरकार हर वो कोशिश कर रही है जो कि करनी चाहिए। लेकिन साहब ये आंदोलन किसानों का नहीं, बल्कि उन लोगों का है जो दलाली कर रहे हैं, दलाली उन लोगों के साथ जो देश की बर्बादी चाहते हैं।

पहले किसान राय बनाने में जुटे थे। लेकिन अब से कुछ देर पहले किसान नेता सामने आए। उन्होंने कहा सरकार की नीयत में खोट है…हम उनका प्रस्ताव खारिज करते हैं। बता दें कि आंदोलन का सीधा असर पंजाब और हरियाणा में घटते भूजल स्तर पर पड़ेगा। जहां पर गेहूं और धान की फसल की सर्वाधिक बोई जाती है। ये दोनों ही फसलों में अत्यधिक पानी की आवश्कता होती है। ऐसे में अगर वहां पर अरहर, उरद, मसूर, मक्का या कपास जैसी फसलों का उत्पादन किया जाएगा तो इन दोनों की क्षेत्रों पानी के बढ़ते संकट से कुछ हद तक निपटा जा सकेगा। लेकिन प्रस्ताव खारिज होने के बाद फिलहाल तो ये सारा प्लान अब पाइपलाइन में चला गया है। अब क्या होगा  वार्ता होगी, प्रस्ताव माना जाएगा…या फिर किसान आंदोलन नये रूप में नजर आएगा।

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