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क्या देश के आदिवासी और अनुसूचित समाज का बीजेपी से मोहभंग हो गया ?

BJP News: किसी भी पार्टी की हार के कई कारण हो सकते हैं। कभी -कभी किसी भी पार्टी को यह लगता है कि किसी ख़ास जाति,समाज और समुदाय ले लोग उसके वोट बैंक है। लेकिन उस वोट बैंक का मिजाज कब और कैसे बदल जाता है यह कोई नहीं जानता। यही तो लोकतंत्र की खूबी है। जनता जनार्दन कब किस पर रहम कर दे और कब किसे रसातल में पहुंचा दे यह भला कौन जाने ! बीजेपी भी यह आंकलन करने चूक कर गई कर्नाटक चुनाव में। बीजेपी को लग रहा था कि पिछले चुनाव की तरह ही आदिवासी और अनुसूचित समाज के लोग उसे वोट करेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सबसे ज्यादा बीजेपी को झटका इसी वोट बैंक का लगा है। जानकार तो यह भी मन रहे हैं कि भले ही बीजेपी और संघ के लोग आदिवासी समाज में काम करने का दावा करते हैं लेकिन आदिवासी समाज के लोग आज भी बीजेपी पर उतना यकीन नहीं करते जितना कि कांग्रेस पर करते रहे हैं। और ऐसा केवल हालिया चुनाव कर्नाटक में ही देखने को नहीं मिला है। देश के कई अन्य राज्यों में भी आदिवासी और एससी समाज के लोग बीजेपी से दूर हुए हैं।


ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि आदिवासी समाज और एससी समाज बीजेपी से नराज हैं ? इस तरह के सवाल पहले भी उठते रहे हैं लेकिन हालिया कर्नाटक चुनाव के बाद बीजेपी की जो हालत हुई है उसके बाद यह सवाल और भी खड़ा हो गया है। बता दें कि कर्नाटक में एससी ,एसटी की सीटें निर्धारित है। एसटी की जहाँ 15 सीटें सुरक्षित हैं वही एससी की 36 सीटें सुरक्षित है। लेकिन इस बार के चुनाव में एक भी एसटी सीट बीजेपी को नहीं मिली। 15 में से 14 सीट पर कांग्रेस की जीत हुई और एक सीट जेडीएस के कहते में चली गई। जबकि पिछले चुनाव का दृश्य कुछ अलग ही था। पिछले चुनाव में बीजेपी के खाते में सात एसटी सीटें गई थी लेकिन इस बार एसटी समाज ने बीजेपी को गच्चा दे दिया। बीजेपी को लग रहा था कि कम से कम आठ एसटी सीटें उसे मिल सकती हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एसटी समाज ने सभी सीटें कांग्रेस को सौप दिया।

यही हाल एससी सीटों का भी रहा। कर्नाटक में एससी की 36 सुरक्षित सीटों पर भी बीजेपी को बड़ा झटका लगा है। पिछले चुनाव में जहां बीजेपी को एससी कोटे की 26 सीटें हाथ लग गई थी ,इस बार वह 12 सीटों पर ही सिमट गई। कांग्रेस को इस बार 21 सीटें एससी की मिली है। यह सब क्यों हुआ इस पर ज्यादा मंथन तो बीजेपी करेगी ही लेकिन एक बात साफ है कि लोगों का मिजाज अब बीजेपी के खिलाफ जाता दिख रहा है। अगर यही मिजाज आगे तक बना रहा तो अगले लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी को झटका लग सकता है।

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ऐसा नहीं है कि आदिवासी वोट को लेकर पहली बार कर्नाटक में बीजेपी पर सवाल उठ रहे हैं। इसी तरह के सवाल झारखंड और छत्तीसगढ़ चुनाव परिणाम के बाद भी उठे थे। दोनों राज्य आदिवासी बहुल हैं और बीजेपी यहां लम्बे समय से काम करती रही हैं लेकिन पिछले चुनाव में इन दोनों राज्यों में बीजेपी को मुँह की खानी पड़ी थी। बीजेपी की करारी हार हुई थी। झारखंड में आदिवासी समाज के लिए 28 सीटें सुरक्षित हैं लेकिन पिछले चुनाव में बीजेपी मात्र दो सीटें ही जीत पायी थी। झामुमो को 19 सीटें मिली थी और कांग्रेस के पाले में 6 सीटें गई थी। यही हाल छत्तीसगढ़ में भी हुआ था। ऐसे में सवाल है कि जब बीजेपी आदिवासी लकयां की बात करती है तो उसे वोट क्यों नहीं मिल रहे ? इसका जवाब शायद अब बीजेपी ढूंढने का प्रयास करेगी।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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