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और नीतीश कुमार ने देश के राजनीतिक तापमान को बढ़ा दिया —-

Political News News: यह समझ से परे है कि आखिर नीतीश कुमार चाहते क्या है ? उनकी राजनीति चाहे जैसी भी हो लेकिन देश के भीतर उनकी पहचान जो अब बनेगी उसकी कल्पना भी नहीं जा सकती। कोई कह सकता है कि क्या क्या बीजेपी के साथ जाने भर से नीतीश बदनाम हो रहे हैं ? लेकिन ऐसा नहीं है। बात तो यह है कि आखिर वे कारण क्या चाहते हैं ? और जो करना चाहते है तो उसमे रुकावट क्या है ? और जहाँ तक बीजेपी के साथ जाने की बात है तो सवाल यह भी है कि फिर उन्होंने पलटी मारकर वापस ही क्यों आये थे ? किसी ने उनको बुलाया था क्या ? क्या बिहार के लोग उन्हें तारणहार मानते हैं ? ऐसा भी नहीं है। नीतीश की पहचान तो अब ऐसे नेता के रूप में हो रही है जिसके नाम लेने से ही देश की राजनीति सहम सकती है।
इतिहास में कई ऐसे चेहरे हैं जिनकी पहचान गद्दार के रूप में की जाती है। मुग़ल काल के समय भी ऐसे बहुत से लोग थे जो कहते कुछ थे और करते कुछ थे। अंग्रेजो के समय में भी बहुत से ऐसे लोग थे जिसके कारन हमारे लाखों लोगों की जान चली गई थी। देश की गुलामी में जितनी भूमिका उन अंग्रेजों की नहीं थी उससे ज्यादा भूमिका उन देश के गद्दारों की थी जो अंग्रेजो की दलाली करते हुए देश के साथ धोखा करने से बज नहीं आते थे।


जानकार भी कह रहे हैं कि आखिर वह कौन सी बात है जो नीतीश कुमार को इंडिया गठबंधन से दूर ले जा रही है ? और अचानक ! कुछ लोग कहते हैं कि बीजेपी भले ही मजबूत हैं लेकिन बिहार में उसे पता है कि बिना नीतीश का साथ लिए उसकी राजनीति आगे नहीं बढ़ सकती। बीजेपी को यह भी पता है कि अगर बिहार में 2019 वाला परिणाम उसके पक्ष में नहीं आया तो दिल्ली की गद्दी मुश्किल होगी। बीजेपी को यह भी पता है कि भले ही उसने बिहार में सभी जातियों के भीतर आधार तैयार कर लिया है लेकिन जीतने वाले लोग बहुत ही कम है और बीजेपी को यह भी पता है कि इस बार के लोकसभा चुनाव में उसे पांच से छह सीटों पर ही जीत हासिल हो सकती है।
तो क्या बीजेपी के कहने से नीतीश महागठबंधन से नाता तोड़ रहे हैं ? इंडिया गठबंधन को आगे बढ़ाने वाले नीतीश अचानक बिना किसी को कुछ बताये ही इंडिया गठबंधन को छोड़कर बीजेपी के साथ जा रहे हैं। सवाल यह भी है कि की वे अपनी पार्टी जदयू को बचाने के लिए जा रहे हैं ? क्या उन्हें मालूम हो गया है कि उनकी पार्टी के 9 से ज्यादा सांसद इस बार चुनाव नहीं जीत सकते। इसके साथ ही दर्जन भर से ज्यादा सांसद पार्टी छोड़ने को तैयार है। ऐसा हो भी सकता है। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार भले ही महगठबंधन में आ गए हों लेकिन उनके आठ सांसद बीजेपी के साथ ही कम्फर्ट महसूस करते थे। कहा जा रहा है कि जातीय आधार पर ये सांसद अगर चुनाव में खड़े भी होते हिन् तो इनका जितना मुश्किल है। इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि जदयू के कई सांसद और विधायक पार्टी को तोड़ भी सकते हैं और बीजेपी के साथ जा सकते हैं।


लेकिन क्या यही कहानी है जिसको आधार बनाकर नीतीश कुमार महागठबंधन से अलग होने को तैयार हैं। जानकारी तो और भी बहुत कुछ मिल रही है लेकिन अभी उस पर कुछ भी कहना जल्दबाजी हो सकती है। नीतीश के अगले कदम की सभी लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं लेकिन उधर राजद भी इस बार कमजोर नहीं है। राजद ने तो पूरी तैयारी भी कर ली है। अपने मोर्चे पर लोगों को लगा भी दिया है।
आज राजद नेताओं की बैठक भी पटना में हो रही है। उधर दिल्ली में बीजेपी नेताओं की बैठक चल रही है। चिराग पासवान भी अमित शाह और नड्डा से मिले हैं। जदयू की बैठक भी कल होने वाली है। लेकिन असली सवाल यही है कि आखिर ये सब बैठके क्यों हो रही है ? क्या देश में कोई आपातकाल की स्थिति पैदा हो गई है ?

Akhilesh Akhil

Political Editor

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