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प्रसपा का सपा में विलयः अखिलेश-शिवपाल यादव के बीच की राजनीतिक दूरियां मिटीं

शिवपाल यादव सपा के टिकट पर जसवंतनगर सीट से जीते थे। शिवपाल वर्तमान में सपा से विधायक हैं। हालांकि प्रसपा का कभी कोई प्रतिनिधि नहीं रहा। शिवपाल पहले से ही खुद को सपा का बताते रहे हैं, लेकिन 2017 से सपा मुखिया अखिलेश यादव उन्हें महत्व नहीं दे रहे थे। वे उपेक्षा के शिकार होने के बावजूद सपा व अखिलेश के प्रति हमेशा नरम रहे।

लखनऊ। बृहस्पतिवार को प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) यानी प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय हो गया। यह घोषणा अखिलेश यादव व उनके चाचा शिवपाल यादव ने संयुक्त प्रेस वार्ता में की। शिवपाल यादव इस तरह का बयान बहुत पहले ही दे चुके थे।

शिवपाल यादव की पार्टी प्रसपा का विधानसभा चुनाव में सपा से गठबंधन था। इस गठबंधन के चलते शिवपाल यादव सपा के टिकट पर जसवंतनगर सीट से जीते थे। शिवपाल वर्तमान में सपा से विधायक हैं। हालांकि प्रसपा का कभी कोई प्रतिनिधि नहीं रहा। शिवपाल पहले से ही खुद को सपा का बताते रहे हैं, लेकिन 2017 से सपा मुखिया अखिलेश यादव उन्हें महत्व नहीं दे रहे थे। वे उपेक्षा के शिकार होने के बावजूद सपा व अखिलेश के प्रति हमेशा नरम रहे।

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समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद स्थितियां बदली थी। तब अखिलेश-शिवपाल के दिल मिलने  के कयास लगाने शुरु हो गये थे, जो आज सच साबित हुआ। मैनपुरी लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में बृहस्पतिवार को सपा प्रत्याशी डिंपल यादव की रिकार्ड जीत होन से चाचा-भतीजे की दिलों के बीच राजनीतिक दूरियां भी पूरी तरह से मिट गयीं।

इस जीत में विधानसभा जसवंत नगर के मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इसका श्रेय अखिलेश यादव के सगे चाचा शिवपाल यादव को जाता है। शायद यह वजह है कि चाचा-भतीजे एक साथ मंच पर आये। दोनों ने एक दूसरे का सम्मान किया। साथ ही यादव परिवार की एकता के लिए ऐसा करना जरुरी भी थी।

अखिलेश यादव भी नेताजी के निधन के बाद राजनीतिक रुप से कमजोर हो गये थे। उन्हें भी संरक्षक की जरुरत थे। इसलिए उन्होने की अपने चाचा के प्रति उदारता बरती तो दोनों को साथ आने में देर न लगी। अब देखना होगा कि आने वाले समय में समाजवादी पार्टी में नये क्या बदलाव होते हैं।

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