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पत्रकारों पर बंदिश बनाम कलंकित राजनीति का सच

Journalist vs politicalparties: देश की राजनीति की गिर चुकी है इसकी मिशाल तो यही है कि भ्रष्ट और चाटुकार पत्रकारों को कांग्रेस ने बैन करना शुरू कर दिया है। बैन यह है कि इन कथित बड़े पत्रकारों के कार्यक्रमों में कांग्रेस के प्रवक्ता भाग नहीं लेंगे और इनके सिंगल माइक आईडी पर भी कोई बयान नहीं देंगे। चलिए यह सब पार्टी का मामला है। कोई पार्टी अगर ऐसा ही मानती है कि कुछ मीडिया घराना और कुछ दर्जन भर चाटुकार पत्रकारों ने विपक्ष को कमजोर किया है और सरकार का साथ दिया है तो संभव है यह सब कांग्रेस के साथ खड़ी तमाम विपक्षी पार्टियों की अपनी समझ हो सकती है। और इसमें कोई उसे रोक भी नहीं सकता है।

लेकिन यही हाल जब कांग्रेस शासित राज्यों में भी देखने को मिले तो आप क्या कहेंगे ? क्या मान लिया जाए कि कांग्रेस या फिर अन्य दलों की जंहा सरकार है वहाँ की मीडिया बेहतर काम कर रही है और वह दवाब में नहीं है। क्या वहां के पत्रकार सरकार के खिलाफ बोलकर ,लिखकर आगे बढ़ सकते हैं ?हरगिज नहीं। सच तो यही है कि देश का कोई भी पत्रकार चाहे वह चरण चुम्बक हो या फिर निष्पक्ष सच्ची ख़बरों के साथ अगर खड़ा है तो बहुत दिनों तक वह चल नहीं पा सकता है। उसकी रीढ़ की हड्डी तोड़ दी जा सकती है।

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लेकिन ताज्जुब की बात है कि अगर कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दलों ने कुछ पत्रकारों पर बैन लगाने की बात की है तो बीजेपी को क्या परेशानी है ? देश के विभिन्न टीवी चैनलों के 14 एंकर्स के कार्यक्रम का बहिष्कार करने के मामले में अब कांग्रेस और बीजेपी आमने सामने आ गई है। इसमें कौन सी पार्टी लोकतंत्र को बचाने की बात करती है कहना मुश्किल है। यह खेल अचंभित करने वाला है।
विपक्षी गठबंधन ने इन 14 एंकर्स के नामो की घोषणा कर दी है और इनके कार्यक्रम का बहिष्कार भी कर दिया है। अब बीजेपी ने आरोप लगाया है कि विपक्ष इन एंकर्स से उनके सामने रेंगने की उम्मीद कर रहा था ,लेकिन इन्होने झुकने से इंकार कर दिया। इसलिए विपक्ष ने यह लिस्ट जारी की है।
जिन एंकर्स के नामो की घोषणा विपक्ष ने किया है उनमे शामिल हैं आदित्य त्यागी ,अमन चोपड़ा ,अमिश देवगन ,आनंद नरसिंहम ,अर्नब गोश्वामी ,अशोक श्रीवास्तव ,चित्र त्रिपाठी ,गौरव सावंत ,नाविका कुमार ,रुबिका लियाकत ,शिव अरुर ,सुधीर चौधरी और सुशांत सिन्हा। ये सभी कई अलग -अलग चैनलों के एंकर्स हैं। उधर आईटी सेल के हेड अमित मालवीय ने कि विपक्ष इन एंकर्स को रेंगने की उम्मीद कर रहे थे लेकिन इन्होने झुकने से मना कर दिया।
अब जरा दूसरी तरफ की बातों को देखें। अगर इसी तरह से बीजेपी वाले भी कुछ उन पत्रकारों की सूचि जारी कर दे जो कांग्रेस और विपक्षी गठबंधन के साथ खड़े दीखते हैं तो क्या होगा ? जाहिर ऐसे में पूरी पत्रकारिता ही बदनाम हो जायेगी। और कह सकते हैं कि आने वाले समय में ऐसा हो भी सकता है।

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सच तो यही है कि मौजूदा समय में देश की पत्रकारिता ही सवालों के घेरे में है। आज पत्रकार और मीडिया घराने दो गुटों में बंटे हुए हैं। जिस तरह से एक दाल के नेता दूसरे दाल के नेता को देखना तक पसंद नहीं करते ठीक यही हाल पत्रकारों के बीच हो चला है। अधिकतर पत्रकार और मीडिया घराने अभी बीजेपी के साथ खड़े हैं। यह सब क्यों खड़े हैं यह एक बड़ा सवाल है। कायदे से तो पत्रकारों को देश की राजनीति को जनता के हित में देखने की जरूरत थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
लोकतंत्र में पत्रकारों की बड़ी भूमिका है। इसकी बड़ी भूमिका तो इसी मायने में हैं कि देश के भीतर जो भी राजनीतिक गतिविधिया चल रही है उसका जनता पर क्या असर होने वाला है उसकी जानकारी जनता तक पहुंचाने की थी। लेकिन इधर कुछ वर्षों में अधिकतर पत्रकार सरकार के साथ खड़ी होती गई। सरकार की योजना को सच और विपक्ष के सवाल को गलत बताया जाने लगा। जबकि मीडिया अभी तक विपक्ष की आवज ही रहा है। सरकारी योजनाओं के प्रचार के लिए सरकार का अपना तंत्र अलग से है लेकिन अब देखा जा रहा है कि पत्रकार भी सरकार की योजना का प्रचार कर रहे हैं और जनता के सवालों से पीछे हटते जा रहे हैं। कभी -कभी तो लगता है कि पत्रकार सरकार के प्रवक्त के तौर पर खड़े हैं। लोकतंत्र के लिए यही सबसे बुरी बात है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो देश की पत्रकारिता बच नहीं पायेगी .ख़त्म हो जाएगी और पत्रकार किसी भी पार्टी के प्रवक्ता बनकर रह जायेंगे।

Akhilesh Akhil

Political Editor

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