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क्या है मराठा आरक्षण की लड़ाई? भूख हड़ताल पर बैठे लोग अचानक क्यों भड़क उठे?

Maratha Reservation in Hindi: महाराष्ट्र के जालना में मराठा आरक्षण की मांग कर रहे आंदोलनकारियों और पुलिस में भीषण झड़प हो गई। इसमें कुछ आंदोलनकारियों समेत कई पुलिसकर्मी भी घायल हो गए। अब सवाल उठता हैं भूख हड़ताल पर बैठे लोग अचानक क्यों भड़क उठे? पुलिस को लाठीचार्ज क्यों करना पड़ा? स्थिति इतनी कैसे बिगड़ गई जालना में?

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क्या है पूरा मामला

जानकारी के मुताबिक आपको बता दें ये प्रॉपर जालना में नहीं हुआ है। जालना का एक छोटा सा एक गांव है, वहां जिस तरह से अन्ना हजारे अपने गांव रालेगण सिद्धी के मंदिर में अनशन करते थे, उसी तरह से ये अनशन चल रहा था। मनोज जरांगे-पाटील मराठा क्रांति मोर्चा के समन्वयक हैं। वो काफी दिनों से इस आंदोलन में सक्रिय हैं। वो इस मांग को लेकर आमरण अनशन पर बैठे थे कि (Maratha Reservation) ओबीसी में कुनबी समाज को जो आरक्षण मिला हुआ है, हम मराठों को कुनबी समाज का प्रमाण पत्र देकर आरक्षण दिया जाए। वो 3-4 दिन से आमरण अनशन पर बैठे थे। पुलिस का ऐसा कहना है कि उनकी तबियत बिगड़ रही थी, हम उनको अस्पताल ले जाना चाहते थे।

उसके बाद वहां जो उनके आंदोलनकारी साथी थे, उन्होंने इसका विरोध किया। उसके बाद ये मामला हाथ से निकल गया। वहां काफी तनाव हो गया और भीड़ काफी उग्र हो गई। भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा। लेकिन इस बीच में हुआ ये कि जिस मनोज जरांगे-पाटील को पुलिस उठाकर के अस्पताल ले जाना चाहती थी, वो इस पूरे अफरा-तफरी में आंदोलन स्थल से गायब हो गए। पुलिस उनको अस्पताल नहीं ले जा पाई। वो आज भी अपने आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं। ये घटना थी शुक्रवार की, शुक्रवार को ये लाठीचार्ज हुआ था। उसमें तकरीबन कई आंदोलनकारी (Maratha Reservation) और बड़ी संख्या में पुलिसवाले भी घायल हुए। जब पुलिस ने लाठीचार्ज किया तो वहां पब्लिक ने पथराव किया। आंदोलनकारियों की तरफ से ऐसा कहा जा रहा है। उसमें बड़ी संख्या में पुलिसवाले भी घायल हुए थे। उसके बाद ये मामला इतना तूल पकड़ा, क्योंकि मराठा आरक्षण आंदोलन का अब तक का जो इतिहास रहा है। उन्होंने राज्यभर में 51-52 मोर्चे निकाले, तो कहीं पर भी कोई हिंसा इस तरह की नहीं हुई। इतना अनुशासनबद्ध पूरा आंदोलन चल रहा था।

17 सितंबर तक जालना में संचारबंदी, जमावबंदी कर दी लागू

आंदोलन के मोर्चों के दौरान जो कचरा सड़कों पर होता था, वो भी पीछे एक आंदोलनकारियों (Maratha Reservation) की टोली चलती थी जो कचरा साफ करती हुई चलती थी। ताकि लोगों को तकलीफ नहीं हो। ट्रैफिक कहीं डिस्टर्ब नहीं हुआ। अब तक ये जो पूरा आंदोलन था, बहुत ही शांतिपूर्ण ढंग से चल रहा था। लेकिन अचानक लाठीचार्ज ने इस पूरे आंदोलन को एक नया तेवर दे दिया है। जालना की तरफ जाने वाली जो राज्य परिवहन की बसें हैं, वो लगभग 7 दिनों से बंद हैं। राज्य में 17 सितंबर तक जालना में संचारबंदी, जमावबंदी लागू कर दी गई है। अब त्योहारों का सीजन है। गणेश चतुर्थी है। दही हांडी है। ये सब कार्यक्रम वहां नहीं हो पाएंगे। पुलिस ने रोक लगा दी है। सरकार अपने स्तर पर लगातार कोशिश कर रही है। (Maratha Reservation) मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री आंदोलनकारियों से फ़ोन पर बात कर रहे हैं। लेकिन आंदोलनकारी इसी बात पर अड़े हुए हैं कि जब तक सरकार इस बात का जीआर नहीं निकलती, तब तक आमरण अनशन जारी रहेगा।

1 सितंबर के बाद से क्यों गरमा गई सियासत

मराठाओं की धरती महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मुद्दा भड़का हुआ है। जालना में 1 सितंबर के बाद से सियासत काफी गरमा गई है। विपक्षी दल काफी हमलावर हैं सरकार पर। तो सियासत पर इसका क्या असर देखने को मिल सकता है? जिस तरह से सीएम शिंदे ने कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो न्यायिक जांच तक होगी। क्या बुरी तरह से घिर गई है इस मुद्दे पर सरकार?

सरकार को इस मामले पर बैकफुट पर आना ही था, क्योंकि मराठा राजनीति महाराष्ट्र की राजनीति की रीढ़ की हड्डी है। मराठा समाज जो तकरीबन 30% से 35% है महाराष्ट्र के मतदाताओं की कुल तादाद का, उसको नाराज करके तो कोई भी दल राजनीति नहीं (Maratha Reservation) कर सकता। यही बात है कि विपक्ष भी लगातार इसको भुनाने की कोशिश कर रहा है। जिस दिन शुक्रवार को ये घटना हुई, उस दिन शरद पवार सबसे पहले वहां पहुंचे, उसके बाद में उद्धव ठाकरे गए, अशोक चव्हाण गए कांग्रेस के जो पूर्व मुख्यमंत्री हैं। सारी पार्टियों के बड़े नेता वहां आंदोलनकारियों से बात करने के लिए जा रहे हैं। सबने उस आंदोलन को अपना समर्थन दिया है। विपक्ष ने और सरकार कोशिश कर रही है कि कैसे भी करके या आमरण अनशन खत्म हो जाए। इसलिए मुंबई में जो मराठा आरक्षण को लेकर के मंत्रिमंडल की उपसमिति है, उसकी बैठक हुई और बैठक में ये तय किया गया कि यदि मराठा समाज के लोगों को कुनबी समाज का प्रमाणपत्र देना है तो उसके लिए कैसे काम हो सकता है? उसके लिए सरकार ने 11 सदस्यीय समिति गठित कर दी है, 1 महीने में रिपोर्ट देने को कहा है। लेकिन आंदोलनकारी जो हैं वो ये कह रहे हैं कि हम बिना किसी ठोस लिखित शासनादेश के मिले बिना अपना आंदोलन खत्म नहीं करेंगे।

लाठीचार्ज को लेकर काफी नाराजगी

मराठा आंदोलन को लेकर जो लाठीचार्ज हुआ, उसको लेकर काफी नाराजगी है। समाज के अंदर और युवाओं के अंदर जो मराठा क्रांति मोर्चा नाम से इस पूरे आंदोलन को संचालित करता है, उनके अंदर काफी नाराजगी है। यही कारण है कि मुख्यमंत्री ने जालना के एसपी को कल जबरन छुट्टी पर भेज दिया। जो एडिशनल (Maratha Reservation) एसपी और डीएसपी थे उनको जिले के बाहर भेज दिया। और जो ऐडिशनल डीजी हैं महाराष्ट्र के, उनको एक इस पूरे मामले की जांच का जिम्मा सौंप दिया। एक नया एसपी वहां आनन-फानन में नियुक्त कर दिया । लेकिन इसका कोई बहुत असर आंदोलनकारियों को दिखाई नहीं दे रहा है। राज़ ठाकरे वहां गए थे तो उन्होंने भी शांति की अपील की है। ये कहा है कि पुलिस हमारी दुश्मन नहीं है, लेकिन जिन लोगों ने ये लाठीचार्ज किया है, उन पर कार्रवाई होनी चाहिए। विपक्ष का आरोप यह है कि सरकार के आदेश पर ही ये लाठीचार्ज हुआ है और सरकार के लिए यही एक सबसे बड़ा चुनौती वाला मुद्दा है।

अजित पवार का बयान

मंत्रिमंडल की उपसमिति बैठक के बाद मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और दोनों उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए विपक्ष को चुनौती दी कि अगर विपक्ष ये साबित कर दें कि ये मंत्रालय से आदेश जाने के बाद लाठीचार्ज हुआ है तो हम राजनीति छोड़ देंगे। एक तरह से सरकार कल तक जो डिफेंस में थी, आज फिर से विपक्ष पर हमलावर दिखाई दे रही है। ये आरोप लगा रही है कि महाविकास अघाड़ी की जब सरकार थी तब उन्होंने आरक्षण का क्या किया। क्योंकि विपक्ष ये मांग कर रहा है कि जिस तरह से दूसरे मामलों में अध्यादेश जारी करके आरक्षण (Maratha Reservation) दिए गए या फैसले लिए गए या पहले के फैसलों को बदला गया, उसी तरह सरकार अध्यादेश जारी करके ये आरक्षण लागू करें। लेकिन पूरे मामले में जो सबसे पेचीदा मामला है वो ये है कि मराठा समाज को आरक्षण देने का फैसला तो महाराष्ट्र विधानसभा में हो चुका है। इसमें प्रस्ताव पारित हो गया, आरक्षण लागू भी हो गया था, लेकिन अब ये मामला कोर्ट में लटका हुआ है। मामला वही है कि 50% से ज्यादा आरक्षण दिया नहीं जा सकता और महाराष्ट्र में 50% आरक्षण की सीमा पूरी हो चुकी है।

अभी तक मराठा आंदोलन जो आरक्षण का आंदोलन (Maratha Reservation) है वो जब भी रहा है बहुत शांतिपूर्वक रहा है। पहली बार इस तरह की चूक देखने को मिली है। इस आंदोलन का जो चेहरा बनकर उभरे हैं मनोज जरांगे पाटील, कौन हैं ये? कब से ये इस आंदोलन का हिस्सा हैं?

मनोज जरांगे पाटील कौन हैं?

मनोज जरांगे पाटील बहुत ही सामान्य से कार्यकर्ता थे। लेकिन वो अपने जालना गांव में मराठा क्रांति मोर्चा के समन्वयक हैं। हर जिले में इस संगठन ने अपने समन्वयक नियुक्त किए हैं। उनमें से एक वो हैं और उनका अपने गांव में अच्छा प्रभाव है। अब जो सूचनाएं आ रही हैं जालना से, ये बताया जा रहा है कि वो इस आंदोलन से काफी गहराई तक जुड़े हुए हैं। इस आंदोलन को गति देने के लिए उनके पास जो थोड़ी सी जमीन थी वो भी उन्होंने बेच दी है और आंदोलन को संचालित करने के लिए वे कई ऐसे छोटे मोटे काम भी करते रहे हैं। इस तरह से अगर देखें तो वो भावनात्मक रूप से उस पूरे आंदोलन के साथ जुड़े हैं। मराठवाड़ा जो पूरा एक रीज़न है महाराष्ट्र का, यहां पर मराठा समाज बड़ी संख्या में हैं।

कब तक रहेंगा आंदोलन जारी

सबसे बड़ी बात ये है कि मराठावाड़ा का जो मराठा समाज है वो काफी गरीब है, पिछड़ा हुआ है बनिस्बत पश्चिम महाराष्ट्र के मराठों से। उन लोगों की मांग बहुत तेज है। पिछली बार भी जब इस तरह के आन्दोलन शुरू हुए थे तो मराठवाड़ा से ही इस आंदोलन की ज्वाला भड़की थी। अब ये मराठवाड़ा में ये आंदोलन धीरे-धीरे ज़ोर पकड़ता जा रहा है। आज भी कई जिलों में बंद रखा गया है। आप देखें कि आज जो मंत्रिमंडल की उपसमिति की बैठक हुई उसमें जो छत्रपति शिवाजी महाराज के दोनों गद्दियों के वंशज हैं सतारा और कोल्हापुर, जिसमें उदयनराजे भोंसले और संभाजी राजे भोंसले को भी बुलाया गया था। इस बार सरकार ने मनोज जरांगे पाटील को भी बोला है कि जो हमने समिति बनाई है आप आइए, बात कीजिए। लेकिन उनका कहना है कि जो भी बात होगी, वो यही आंदोलनस्थल पर होगी। जब तक सरकार इस बात का GR जारी नहीं करती, वो मराठा समाज को कुनबी प्रमाण पत्र नहीं देती, तब तक ये आंदोलन जारी रहेगा।

तो जालना का असर अब कई दूसरी जगहों पर दिखना शुरू हो गया है। आंदोलन और विरोध प्रदर्शन कई दूसरे शहरों तक फैल गए हैं। साफ है कि मामले को सही तरीके से हैंडल करने में कहीं न कहीं चूक तो हुई है। देखना होगा कि महाराष्ट्र सरकार इसे कैसे सुलझाती है।

Prachi Chaudhary

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