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महिलाओं का वेतन मर्दों से कम क्यों ? जानिए प्रफेसर ने क्या दिया दुनिया को इसका जवाब और जीता नोबेल पुरस्कार

Claudia Goldin Nobel 2023: क्लाउडिया गोल्डिन को अर्थशास्त्रय में इस साल का नोबेल पुरस्कार मिला है। उन्हों ने महिलाओं की कमाई और लेबर मार्केट में उनकी भागीदारी का पहला व्यापक ब्यौरा दिया है। उनकी स्टडी से पता लगता है कि ग्लोबल लेबर मार्केट में उनका प्रतिनिधित्व बहुत कम है। उन्होंपने इस चीज का शानदार एक्सिप्लेनेशन दिया है कि क्यों महिलाओं को मर्दों से कम सैलरी मिलती है।

क्लाउडिया गोल्डिन को अर्थशास्त्र में 2023 का नोबेल पुरस्काकर मिला है। वह हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र की प्रफेसर हैं। उन्हें वर्क फोर्स या लेबर मार्केट में महिलाओं की भागीदारी के बारे में समझ बढ़ाने के लिए यह पुरस्कार मिला है। क्लाउडिया ने इस सवाल का बहुत अच्छे से जवाब दिया है कि आखिर महिलाओं को मर्दों से कम सैलरी क्यों मिलती रही है। यह ट्रेंड पूरी दुनिया में क्यों दिखता है। इस बारे में उनकी एक किताब ‘करियर एंड फैमिली: वुमेन्स सेंचुरी लॉन्गो जर्नी टुवर्ड्स इक्विटी’ भी है। 1989 से 2017 तक वह NBER के अमेरिकी अर्थव्यवस्था विकास कार्यक्रम की डायरेक्टर थीं। वह NBER के ‘जेंडर इन द इकोनॉमी’ समूह की को-डायरेक्टर भी हैं। महिलाओं और मर्दों की सैलरी में अंतर को लेकर क्लाउडिया ने क्या एक्सीप्ले नेशन दिया है, आइए यहां देखते हैं।

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क्लाउडिया गोल्डिन कहती हैं समानता को अक्सर एक ही नौकरी में पुरुषों और महिलाओं की कमाई से जोड़कर देखा जाता है। जिस समानता को हासिल करने की कोशिश की जा रही है, शायद वह मुमकिन नहीं होगा। हमें यह समझना होगा कि असमानता का कारण क्या है। लैंगिक आय अंतर, जैसा कि कहा जाता है, कमाई में अंतर से कहीं ज्यादा है। दरअसल, असमानता दो क्षेत्रों में है। ये दो क्षेत्र हैं करियर और परिवार। ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।

कमाई में समानता तभी जब…
क्लाडिया के मुताबिक, अगर हम परिवारों के भीतर समानता पा सकते हैं तो हमारे पास वर्कप्लेास पर लैंगिक आय समानता हासिल करने का बेहतर मौका होगा। इसका कारण यह है कि बच्चे समय लेते हैं। करियर में भी समय लगता है। अगर महिलाएं बच्चों की देखभाल (घर की देखरेख और बुजुर्गों की देखभाल) अधिक करती हैं तो उनके पास अपने करियर के लिए कम समय होता है। यानी अपने करियर को वे कम घंटे देती हैं। वे ज्या दा डिमांडिंग जॉब से परहेज करती हैं। नतीजा, वे कम कमाती हैं। देखभाल में असमानता इतिहास, पारिवारिक मानदंडों और व्यक्तिगत प्राथमिकताओं का मसला है। लिहाजा, लैंगिक आय का अंतर बड़े पैमाने पर कार्यस्थल के बाहर से उभर रहा है।

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आमतौर पर महिलाए घर में उलझी रहती हैं
क्लाडिया कहती हैं कि जो कर्मचारी हर समय काम करने को तैयार रहता है और जो कार्यालय में ऑन-कॉल रहता है उसे रिवॉर्ड मिलता है। ये पुरस्कार लगाए गए समय के अनुपात में नहीं हैं। समय को दोगुना करने पर कमाई दोगुनी से भी अधिक हो जाती है। इसे ही हम ग्रीडी वर्क यानी लालची काम कहते हैं। अगर किसी व्यक्ति के बच्चे हैं या कोई अन्य पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं, तो घर पर किसी को ऑन-कॉल रहना पड़ता है।

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आमतौर पर घर में महिलाएं ऑन-कॉल (on call) होती हैं। इस तरह लैंगिक असमानता का दूसरा पहलू कपल में असमानता है। इन असमानताओं से बाहर निकलने का रास्ता कार्यस्थल के लचीलेपन और बच्चों की देखभाल की लागत को कम करना है। पहला कार्यस्थल में बदलाव के साथ हो सकता है जो महामारी के दौरान हुआ है और दूसरा राजनीतिक गति पकड़ रहा है। कई तरीकों से पुरुषों को साथ लाना समाधान का एक और हिस्सा है।

Prachi Chaudhary

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